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ते ज॑ज्ञिरे दि॒व ऋ॒ष्वास॑ उ॒क्षणो॑ रु॒द्रस्य॒ मर्या॒ असु॑रा अरे॒पसः॑। पा॒व॒कासः॒ शुच॑यः॒ सूर्या॑इव॒ सत्वा॑नो॒ न द्र॒प्सिनो॑ घो॒रव॑र्पसः ॥

English Transliteration

te jajñire diva ṛṣvāsa ukṣaṇo rudrasya maryā asurā arepasaḥ | pāvakāsaḥ śucayaḥ sūryā iva satvāno na drapsino ghoravarpasaḥ ||

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Pad Path

ते। ज॒ज्ञि॒रे॒। दि॒वः। ऋ॒ष्वासः॑। उ॒क्षणः॑। रु॒द्रस्य॑। मर्या॑। असु॑राः। अ॒रे॒पसः॑। पा॒व॒कासः॒। शुच॑यः। सूर्याः॑ऽइव। सत्वा॑नः। न। द्र॒प्सिनः॑। घो॒रऽव॑र्पसः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:64» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी उक्त वायु कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को उचित है कि जो (रुद्रस्य) जीव वा प्राण के सम्बन्धी पवन (दिवः) प्रकाश से (जज्ञिरे) उत्पन्न होते हैं जो (सूर्याइव) सूर्य के किरणों के समान (ऋष्वासः) ज्ञान के हेतु (उक्षणः) सेचन और (पावकासः) पवित्र करनेवाले (शुचयः) शुद्ध जो (सत्वानः) बल पराक्रमवाले प्राणियों के (न) समान (मर्याः) मरणधर्मयुक्त (असुराः) प्रकाशरहित (अरेपसः) पापों से पृथक् (द्रप्सिनः) नाना प्रकार के मोहों से युक्त (घोरवर्पसः) भयङ्कर वायु के हैं (ते) उन्हीं के संग से विद्यादि उत्तम गुणों का ग्रहण करो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। जैसे ईश्वर की सृष्टि में सिंह, हाथी और मनुष्य आदि प्राणी बलवान् होते हैं, वैसे वायु भी है। जैसे सूर्य की किरणें पवित्र करनेवाली हैं, वैसे वायु भी। इन दोनों के बिना, रोग, रोग का नाश, मरण और जन्म आदि व्यवहार नहीं हो सकते। इससे मनुष्यों को चाहिये कि इनके गुणों को जानके सब कार्यों में यथावत् संप्रयोग करें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते वायवः कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! युष्माभिर्ये रुद्रस्य जीवस्य प्राणसमुदायस्य वा सम्बन्धिनो वायवो दिवो जज्ञिरे जायन्ते। ये सूर्य्याइव ऋष्वास उक्षणः पावकासः शुचयो वर्त्तन्ते। ये सत्वानो नेव मर्या असुरा अरेपसो द्रप्सिनो घोरवर्पसः सन्ति तेषां सङ्गेन विद्यादिशुभगुणा गृह्यन्ताम् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (ते) वायव इव (जज्ञिरे) प्रादुर्भवन्ति (दिवः) प्रकाशात् (ऋष्वासः) ज्ञानहेतवः (उक्षणः) सेचनकर्त्तारः। अत्र वा षपूर्वस्य निगमे। (अष्टा०६.४.९) अनेन दीर्घनिषेधः। (रुद्रस्य) समष्टिप्राणस्य (मर्याः) मरणधर्मकाः (असुराः) प्रकाशरहिताः (अरेपसः) अव्यक्तशब्दा निष्पापाः (पावकासः) पवित्रकारकाः (शुचयः) पवित्रा (सूर्य्याइव) सूर्य्यस्य किरणा इव (सत्वानः) बलपराक्रमप्राणिभूतगणाः (न) (इव) (द्रप्सिनः) बहुद्रप्सो विविधो मोहोऽस्ति येषु ते (घोरवर्पसः) घोरं वर्पो रूपं येषान्ते ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारौ। यथेश्वरसृष्टौ सिंहहस्तिमनुष्यादयो बलवन्तः सन्ति तथा वायवो वर्त्तन्ते। यथा सूर्यकिरणाः पवित्रकारकाः सन्ति तथैव वायवोऽपि। नह्येतयोर्विना रोगाऽऽरोग्यमरणजन्मादयो व्यवहाराः सम्भवितुं शक्यास्तस्मान्मनुष्यैरेतेषां गुणान् विज्ञाय सर्वेषु कार्येषु यथावत्संप्रयोगाः कार्याः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जसे ईश्वराच्या सृष्टीत सिंह, हत्ती व माणसे इत्यादी प्राणी बलवान असतात तसाच वायूही आहे. सूर्याची किरणे जशी पवित्र करतात तसाच वायू आहे. या दोन्हीशिवाय रोग, रोगाचा नाश, मरण, जन्म इत्यादी व्यवहार होऊ शकत नाहीत. यामुळे माणसांनी त्यांचे गुण जाणून सर्व कार्यात यथायोग्य संप्रयोग करावा. ॥ २ ॥