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वृष्णे॒ शर्धा॑य॒ सुम॑खाय वे॒धसे॒ नोधः॑ सुवृ॒क्तिं प्र भ॑रा म॒रुद्भ्यः॑। अ॒पो न धीरो॒ मन॑सा सु॒हस्त्यो॒ गिरः॒ सम॑ञ्जे वि॒दथे॑ष्वा॒भुवः॑ ॥

English Transliteration

vṛṣṇe śardhāya sumakhāya vedhase nodhaḥ suvṛktim pra bharā marudbhyaḥ | apo na dhīro manasā suhastyo giraḥ sam añje vidatheṣv ābhuvaḥ ||

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Pad Path

वृष्णे॑। शर्धा॑य। सुऽम॑खाय। वे॒धसे॑। नोधः॑। सु॒ऽवृ॒क्तिम्। प्र। भ॒र॒। म॒रुत्ऽभ्यः॑। अ॒पः। न। धीरः॑। मन॑सा। सु॒ऽहस्त्यः॑। गिरः॑। सम्। अ॒ञ्जे॒। वि॒दथे॑षु। आ॒ऽभुवः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:64» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चौसठवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है, उसके पहिले मन्त्र में वायु के गुणों के दृष्टान्त से विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (नोधः) स्तुति करनेवाले मनुष्य ! (आभुवः) अच्छे प्रकार उत्पन्न होनेवाले (अपः) कर्म वा प्राणों के समान (धीरः) संयम से रहनेवाला विद्वान् (सुहस्त्यः) उत्तम हस्तक्रियाओं में कुशल मैं (मनसा) विज्ञान और (मरुद्भ्यः) पवनों के सकाश से (विदथेषु) युद्धादि चेष्टामय यज्ञों में (गिरः) वाणी (सुवृक्तिम्) उत्तमता से दुष्टों को रोकनेवाली क्रिया को (समञ्जे) अपनी इच्छा से ग्रहण करता हूँ, वैसे ही तू (प्रभर) धारण कर ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जितनी चेष्टा, भावना, बल, विज्ञान, पुरुषार्थ धारण करना, छोड़ना, कहना, सुनना, बढ़ना, नष्ट होना, भूख, प्यास आदि हैं, वे सब वायु के निमित्त से ही होते हैं। जिस प्रकार कि इस विद्या को मैं जानता हूँ, वैसे ही तू भी ग्रहण कर, ऐसा उपदेश सबको करो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वायुस्वरूपगुणदृष्टान्तेन विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे नोधो मनुष्य ! आभुव अपो नेव धीरः सुहस्त्योऽहं वृष्णे शर्द्धाय वेधसे सुमखाय मनसा मरुद्भ्यो विदथेषु गिरः सुवृक्तिं च समञ्जे तथैव त्वं प्रभर ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वृष्णे) वृष्टिकर्त्रे (शर्द्धाय) बलाय (सुमखाय) शोभनाय चेष्टासाध्याय यज्ञाय (वेधसे) धारणाय। अत्र विधाञो वेध च। (उणा०४.१३२) अनेनास्य सिद्धिः। (नोधः) स्तावकः (सुवृक्तिम्) वर्जयन्त्यनया सा शोभना चासौ वृक्तिश्च ताम् (प्र) प्रकृष्टार्थे (भर) धर (मरुद्भ्यः) वायुभ्यः (अपः) प्राणान् कर्माणि वा (न) इव (धीरः) संयमी विद्वान् मनुष्यः (मनसा) विज्ञानेन (सुहस्त्यः) शोभनहस्तक्रियाः सुहस्तास्तासु साधुः (गिरः) वाचः (सम्) सम्यक् (अञ्जे) स्वेच्छया गृह्णामि (विदथेषु) युद्धादिचेष्टामययज्ञेषु (आभुवः) समन्ताद्भवन्ति ये या वा तान् ता वा ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यावच्चेष्टा भावना बलं विज्ञानं पुरुषार्थो धारणं विसर्जनं वचनं श्रवणं वृद्धिः क्षयः क्षुत्पिपासादिकं च भवति तावत् सर्वं वायुनिमित्तेनैव जायत इति वेद्यम्। यादृशीमेतां विद्यामहं जानामि तादृशीमेव त्वमपि गृहाणेति सर्वदोपदेष्टव्यम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायूच्या गुणांचा उपदेश असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की प्रयत्न भावना, बल, विज्ञान, पुरुषार्थधारण, विसर्जन, वचन, श्रवण, वृद्धी, क्षय, भूक, तहान इत्यादी वायूच्या निमित्तानेच होतात. ‘ज्या प्रकारे या विद्येला मी जाणतो तसेच तू ही ग्रहण कर’ असा उपदेश सर्वांना करावा. ॥ १ ॥