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आ यद्धरी॑ इन्द्र॒ विव्र॑ता॒ वेरा ते॒ वज्रं॑ जरि॒ता बा॒ह्वोर्धा॑त्। येना॑विहर्यतक्रतो अ॒मित्रा॒न्पुर॑ इ॒ष्णासि॑ पुरुहूत पू॒र्वीः ॥

English Transliteration

ā yad dharī indra vivratā ver ā te vajraṁ jaritā bāhvor dhāt | yenāviharyatakrato amitrān pura iṣṇāsi puruhūta pūrvīḥ ||

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Pad Path

आ। यत्। हरी॒ इति॑। इ॒न्द्र॒। विऽव्र॑ता। वेः। आ। ते॒। वज्र॑म्। ज॒रि॒ता। बा॒ह्वोः। धा॒त्। येन॑। अ॒वि॒ह॒र्य॒त॒क्र॒तो॒ इत्य॑विहर्यतऽक्रतो। अ॒मित्रा॑न्। पुरः॑। इ॒ष्णासि॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। पू॒र्वीः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:63» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में सभापति आदि के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अविहर्य्यक्रतो) दुष्ट बुद्धि और पाप कर्मों से रहित (पुरुहूत) बहुत विद्वानों से सत्कार को प्राप्त करानेवाले सभाद्यध्यक्ष ! आप (यत्) जिस कारण (विव्रता) नाना प्रकार के नियमों के उत्पन्न करनेवाले (हरी) सेना और न्यायप्रकाश को (आवेः) अच्छे प्रकार जानते हो (येन) जिस वज्र से (अमित्रान्) शत्रुओं को मारते तथा जिससे उनके (पूर्वीः) बहुत (पुरः) नगरों को (इष्णासि) जीतने के लिये इच्छा करते और शत्रुओं के पराजय और अपने विजय के लिये प्रतिक्षण जाते हो, इससे (जरिता) सब विद्याओं की स्तुति करनेवाला मनुष्य (ते) आपके (बाह्वोः) भुजाओं के बल के आश्रय से (वज्रम्) वज्र को (आधात्) धारण करता है ॥ २ ॥
Connotation: - सभापति आदि को उचित है कि इस प्रकार के उत्तम स्वभाव, गुण और कर्मों को स्वीकार करें कि जिससे सब मनुष्य इस कर्म को देख तथा शिष्ट होकर निष्कण्टक राज्य के सुख को सदा भोगें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सभाद्यध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे अविहर्यतक्रतो पुरुहूतेन्द्र सभाद्यध्यक्ष ! त्वं यद्यस्माद्विव्रतो हरी आवेः समन्ताद् विद्धि। येनामित्रान् हंसि येन शत्रूणां पूर्वीः पुर इष्णासि तत्पराजयाय स्वविजयाभीक्ष्णं गच्छसि तस्माज्जरिता ते तव बाह्वोराश्रयेण वज्रमाधाद्दधाति ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (यत्) यस्मात् (हरी) सद्व्यवहारहरणशीलसेनान्यायप्रकाशौ (इन्द्र) परमैश्वर्यकारक सभाध्यक्ष (विव्रता) विविधानि व्रतानि शीलानि याभ्यां तौ (वेः) विद्धि। अत्रोभयत्राडभावः। (आ) आभिमुख्ये (ते) तव (वज्रम्) आज्ञापनं शस्त्रसमूहं वा (जरिता) सर्वविद्यास्तोता (बाह्वोः) बलवीर्ययोः (धात्) दधाति (येन) वज्रेण (अविहर्यतक्रतो) न विद्यन्ते विरुद्धा हर्य्यताः प्रज्ञाकर्माणि यस्य तत्सम्बुद्धौ (अमित्रान्) शत्रून् (पुरः) नगरीः (इष्णासि) अभीक्ष्णं प्राप्नोषि गच्छसि वा (पुरुहूत) बहुभिर्विद्वद्भिः पूजित (पूर्वीः) पूर्वेषां सम्बन्धिनीः ॥ २ ॥
Connotation: - सभाद्यध्यक्षेणैवं शीलं गुणान् कर्माणि च स्वीकार्याणि यतः सर्वे मनुष्यास्तदेतद् दृष्ट्वा शिष्टा भूत्वा निष्कण्टकं राज्यसुखं सर्वदा भुञ्जीरन्निति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभापती इत्यादींनी या प्रकारे उत्तम स्वभाव, गुण व कर्मांचा स्वीकार करावा. ज्यामुळे सर्व माणसांनी या कर्माला पाहून व शिष्ट बनून निष्कंटक राज्याचे सुख सदैव भोगावे. ॥ २ ॥