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स॒नादे॒व तव॒ रायो॒ गभ॑स्तौ॒ न क्षीय॑न्ते॒ नोप॑ दस्यन्ति दस्म। द्यु॒माँ अ॑सि॒ क्रतु॑माँ इन्द्र॒ धीरः॒ शिक्षा॑ शचीव॒स्तव॑ नः॒ शची॑भिः ॥

English Transliteration

sanād eva tava rāyo gabhastau na kṣīyante nopa dasyanti dasma | dyumām̐ asi kratumām̐ indra dhīraḥ śikṣā śacīvas tava naḥ śacībhiḥ ||

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Pad Path

स॒नात्। ए॒व। तव॑। रायः॑। गभ॑स्तौ। न। क्षीय॑न्ते। न। उप॑। द॒स्य॒न्ति॒। द॒स्म॒। द्यु॒मान्। अ॒सि॒। क्रतु॑ऽमान्। इ॒न्द्र॒। धीरः॑ शिक्ष॑। श॒ची॒ऽवः॒। तव॑। नः॒। शची॑भिः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:62» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में सूर्य्य और सभापति आदि के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (दस्म) शत्रुओं के नाश करनेवाले (शचीवः) उत्तम बुद्धि वा वाणी से युक्त (इन्द्र) उत्तम धनवाले सभाध्यक्ष ! जो आप (द्युमान्) विद्यादि श्रेष्ठ गुणों के प्रकाश से युक्त (क्रतुमान्) बुद्धि से विचार कर कर्म करनेवाले ! (धीरः) ध्यानी (असि) हैं, उस (तव) आपके (गभस्तौ) राजनीति के प्रकाश में (सनात्) सनातन से (रायः) धन (नैव) नहीं (क्षीयन्ते) क्षीण तथा (तव) आपके प्रबन्ध में (न) नहीं (उपदस्यन्ति) नष्ट होते हैं, सो आप अपनी (शचीभिः) बुद्धि, वाणी और कर्म से (नः) हम लोगों को (शिक्ष) उपदेश दीजिये ॥ १२ ॥
Connotation: - मनुष्यो को चाहिये कि जो सनातन वेद के ज्ञान से शिक्षा को और सभापति आदि के अधिकार को प्राप्त होके प्रजा का पालन करे, उसी मनुष्य को धर्मात्मा जानें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यसभाद्यध्यक्षयोर्गुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे दस्म शचीव इन्द्र ! यस्त्वं द्युमान् क्रतुमान् धीरोऽसि तस्य तव गभस्तौ सनाद्रायो नैव क्षीयन्ते, तव नोपदस्यन्ति स त्वं शचीभिर्नोऽस्मान् शिक्ष ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (सनात्) सनातनात् (एव) निश्चये (तव) सभाध्यक्षस्य (रायः) धनानि (गभस्तौ) नीतिप्रकाशे। गभस्तय इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (न) निषेधे (क्षीयन्ते) क्षीणानि भवन्ति (न) निषेधे (उप) सामीप्ये (दस्यन्ति) नश्यन्ति (दस्म) शत्रोरुपक्षेतः (द्युमान्) विद्यादिसद्गुणप्रकाशयुक्तः (असि) (क्रतुमान्) प्रज्ञावान् (इन्द्र) परमधनवन् परमधनहेतुर्वा (धीरः) ध्यानवान् (शिक्ष) उपदिश (शचीवः) शची प्रशस्ता वाक् प्रज्ञा कर्म वा विद्यतेऽस्मिन् तत्सम्बुद्धौ। शचीति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) कर्मनामसु पठितम्। (निघं०२.१) वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (तव) भवत्प्रबन्धे (नः) अस्मान् (शचीभिः) कर्मभिः ॥ १२ ॥
Connotation: - यः सनातनाद्वेदविज्ञानात् शिक्षां प्राप्य सभाद्यध्यक्षो भूत्वा प्रजाः पालयेत्, स मनुष्यो धार्मिको वेद्यः ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो सनातन वेदाच्या ज्ञानाने शिक्षण व सभापती इत्यादीचे अधिकार प्राप्त करून प्रजेचे पालन करतो त्यालाच माणसांनी धर्मात्मा समजावे. ॥ १२ ॥