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अ॒स्येदे॒व प्र रि॑रिचे महि॒त्वं दि॒वस्पृ॑थि॒व्याः पर्य॒न्तरि॑क्षात्। स्व॒राळिन्द्रो॒ दम॒ आ वि॒श्वगू॑र्तः स्व॒रिरम॑त्रो ववक्षे॒ रणा॑य ॥

English Transliteration

asyed eva pra ririce mahitvaṁ divas pṛthivyāḥ pary antarikṣāt | svarāḻ indro dama ā viśvagūrtaḥ svarir amatro vavakṣe raṇāya ||

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Pad Path

अ॒स्य। इत्। ए॒व। प्र। रि॒रि॒चे॒। म॒हि॒त्वम्। दि॒वः। पृ॒थि॒व्याः। परि॑। अ॒न्तरि॑क्षात्। स्व॒ऽराट्। इन्द्रः॑। दमे॑। आ। वि॒श्वऽगू॑र्तः। सु॒ऽअ॒रिः। अम॑त्रः। व॒व॒क्षे॒। रणा॑य ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:61» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य सभाध्यक्ष कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - जो (विश्वगूर्त्तः) सब भोज्य वस्तुओं को भक्षण करने (स्वरिः) उत्तम शत्रुओं (अमत्रः) ज्ञानवान् वा ज्ञान का हेतु (स्वराट्) अपने आप प्रकाश सहित (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्त सूर्य वा सभाध्यक्ष (दमे) उत्तम घर वा संसार में (रणाय) संग्राम के लिये (आववक्षे) रोष वा अच्छे प्रकार घात करता है वा जिस की (दिवः) प्रकाश (पृथिव्याः) भूमि और (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (इत्) भी (परि) सब प्रकार (महित्वम्) पूज्य वा महागुणविशिष्ट महिमा (प्र रिरिचे) विशेष हैं, उस (अस्य) इस सूर्य वा सभाध्यक्ष का (एव) ही कार्यों में उपयोग वा सभा आदि में अधिकार देना चाहिये ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को जैसे सूर्य, पृथिव्यादिकों से गुण वा परिमाण के द्वारा अधिक है, वैसे ही उत्तम गुण युक्त सभा आदि के अधिपति राजा को अधिकार देकर सब कार्यों की सिद्धि करनी चाहिये ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यसभाद्यध्यक्षौ कथं भूतावित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यो विश्वगूर्त्तः स्वरिरमत्रः स्वराडिन्द्रो दमे रणायाववक्षे यस्येदपि दिवः पृथिव्या अन्तरिक्षात् परि महित्वं प्ररिरिचेऽस्ति रिक्तं वर्त्तते तस्यास्यैव सभादिष्वधिकारः कार्य्येषूपयोगश्च कर्त्तव्यः ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (अस्य) सभाद्यध्यक्षस्य सूर्यस्य वा (इत्) अपि (एव) निश्चयार्थे (प्र) प्रकृष्टार्थे (रिरिचे) रिणक्ति अधिकं वर्त्तते (महित्वम्) पूज्यत्वं महागुणविशिष्टत्वं परिमाणेनाधिकत्वं च (दिवः) प्रकाशात् (पृथिव्याः) भूमेः (परि) सर्वतः (अन्तरिक्षात्) सूक्ष्मादाकाशात् (स्वराट्) यः स्वयं राजते सः (इन्द्रः) परमैश्वर्यहेतुमान् हेतुर्वा (दमे) दाम्यन्त्युपशाम्यन्ति जना यस्मिन् गृहे संसारे वा तस्मिन् (आ) आभिमुख्ये (विश्वगूर्त्तः) विश्वं सर्वं भोज्यं वस्तु निगलितं येन सः (स्वरिः) यः शोभनश्चासावरिश्च (अमत्रः) ज्ञानवान् ज्ञानहेतुर्वा (ववक्षे) वक्षति रोषं सङ्घातं करोति (रणाय) सङ्ग्रामाय ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा सूर्यः पृथिव्यादिभ्यो गुणैः परिमाणेनाऽधिकोऽस्ति तथैवोत्तमगुणं सभाद्यधिपतिं राजानमधिकृत्य सर्वकार्य्यसिद्धिः कार्य्या ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जसा सूर्य पृथ्वी इत्यादीपेक्षा गुण व परिमाण यांनी अधिक असतो तसेच उत्तम गुणयुक्त सभा इत्यादीच्या अधिपती राजाला अधिकार देऊन माणसांनी सर्व कार्याची सिद्धी केली पाहिजे. ॥ ९ ॥