Go To Mantra

अ॒स्मा इदु॒ प्र त॒वसे॑ तु॒राय॒ प्रयो॒ न ह॑र्मि॒ स्तोमं॒ माहि॑नाय। ऋची॑षमा॒याध्रि॑गव॒ ओह॒मिन्द्रा॑य॒ ब्रह्मा॑णि रा॒तत॑मा ॥

English Transliteration

asmā id u pra tavase turāya prayo na harmi stomam māhināya | ṛcīṣamāyādhrigava oham indrāya brahmāṇi rātatamā ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒स्मै। इत्। ऊँ॒ इति॑। प्र। त॒वसे॑। तु॒राय॑। प्रयः॑। न। ह॒र्मि॒। स्तोम॑म्। माहि॑नाय। ऋची॑षमाय। अध्रि॑ऽगवे। ओह॑म्। इन्द्रा॑य। ब्रह्मा॑णि। रा॒तऽत॑मा ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:61» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इकसठवें ६१ सूक्त का आरम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में सभा आदि का अध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् लोगो ! जैसे मैं (उ) वितर्कपूर्वक (प्रयः) तृप्ति करनेवाले कर्म्म के (न) समान (तवसे) बलवान् (तुराय) कार्यसिद्धि के लिये शीघ्र करता (ऋचीषमाय) स्तुति करने को प्राप्त होने तथा (अध्रिगवे) शत्रुओं से असह्य वीरों के प्राप्त होनेहारे (माहिनाय) उत्तम-उत्तम गुणों से बड़े (अस्मै) इस (इन्द्राय) सभाध्यक्ष के लिये (इत्) ही (ओहम्) प्राप्त करनेवाले (स्तोमम्) स्तुति को (राततमा) अतिशय करने के योग्य (ब्रह्माणि) संस्कार किये हुए अन्न वा धनों को (प्र) (हर्मि) देता हूँ, वैसे तुम भी किया करो ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि स्तुति के योग्य पुरुषों को राज्य का अधिकार देकर, उनके लिये यथायोग्य हाथों से प्रयुक्त किये हुए धनों को देकर, उत्तम-उत्तम अन्नादिकों से सदा सत्कार करें और राजपुरुषों को भी चाहिये कि प्रजा के पुरुषों का सत्कार करें ॥ १ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभाद्यध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यथाहमु प्रयो न प्रीतिकारकमन्नमिव तवसे तुराय ऋचीषमायाध्रिगवे माहिनायास्मा इन्द्राय सभाद्यध्यक्षायेदेवौहं स्तोमं राततमा ब्रह्माण्यन्नानि धनानि वा प्रहर्मि प्रकृष्टतया ददामि तथा यूयमपि कुरुत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अस्मै) सभाद्यध्यक्षाय (इत्) एव (उ) वितर्के (प्र) प्रकृष्टे (तवसे) बलवते (तुराय) कार्य्यसिद्धये तूर्णं प्रवर्त्तमानाय शत्रूणां हिंसकाय वा (प्रयः) तृप्तिकारकमन्नम् (न) इव (हर्मि) हरामि। अत्र शपो लुक्। (स्तोमम्) स्तुतिम् (माहिनाय) उत्कृष्टयोगान्महते (ऋचीषमाय) ऋच्यन्ते स्तूयन्ते ये त ऋचीषास्तानतिमान्यान् करोति तस्मै। अत्र ऋचधातोर्बाहुलकादौणादिकः कर्मणीषन् प्रत्ययः। ऋचीषमः स्तूयते वज्री ऋचा समः। (निरु०६.२३) (अध्रिगवे) शत्रुभिरध्रयोऽसहमाना वीरास्तान् गच्छति प्राप्नोति तस्मै (ओहम्) ओहति प्राप्नोति येन तम्। (इन्द्राय) परमैश्वर्यकारकाय (ब्रह्माणि) सुसंस्कृतानि बृहत्सुखकारकाण्यन्नानि धनानि वा। ब्रह्मेत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) धननामसु च पठितम्। (निघं०२.१०) (राततमा) अतिशयेन दातव्यानि ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यैः स्तोतुमर्हान् राज्याधिकारिणः कृत्वा तेभ्यो यथायोग्यानि करप्रयुक्तानि धनानि दत्त्वोत्तमैरन्नादिभिः सदा सत्कर्त्तव्याः राजपुरुषैः प्रजास्था मनुष्याश्च ॥ १ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सभाध्यक्ष इत्यादीचे वर्णन व अग्निविद्येचा प्रचार करणे सांगितलेले आहे. यामुळे या सूक्तार्थाबरोबर पूर्वीच्या सूक्तार्थाची संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी प्रशंसनीय पुरुषांना राज्याचा अधिकार द्यावा. त्यांना यथायोग्य धन देऊन उत्तम अन्न इत्यादींनी सदैव सत्कार करावा व राज-पुरुषांनीही प्रजेचा सत्कार करावा. ॥ १ ॥