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तं त्वा॑ व॒यं पति॑मग्ने रयी॒णां प्र शं॑सामो म॒तिभि॒र्गोत॑मासः। आ॒शुं न वा॑जंभ॒रं म॒र्जय॑न्तः प्रा॒तर्म॒क्षू धि॒याव॑सुर्जगम्यात् ॥

English Transliteration

taṁ tvā vayam patim agne rayīṇām pra śaṁsāmo matibhir gotamāsaḥ | āśuṁ na vājambharam marjayantaḥ prātar makṣū dhiyāvasur jagamyāt ||

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Pad Path

तम्। त्वा॒। व॒यम्। पति॑म्। अ॒ग्ने॒। र॒यी॒णाम्। प्र। शं॒सा॒मः॒। म॒तिऽभिः॑। गोत॑मासः। आ॒शुम्। न। वा॒ज॒म्ऽभ॒रम्। म॒र्जय॑न्तः। प्रा॒तः। म॒क्षु। धि॒याऽव॑सुः। ज॒ग॒म्या॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:60» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) पावकवत्पवित्रस्वरूप विद्वन् ! जैसे (धियावसुः) बुद्धियों में वसानेवाला (मतिभिः) बुद्धिमानों के साथ (वाजंभरम्) वेग को धारण करनेवाले को (प्रातः) प्रतिदिन (आशुं न) जैसे शीघ्र चलनेवाले घोड़े को जोड़ के स्थानान्तर को तुरन्त जाते-आते हैं, वैसे (मक्षु) शीघ्र (रयीणाम्) चक्रवर्त्ति राज्यलक्ष्मी आदि धनों के (पतिम्) पालन करनेवाले को (जगम्यात्) अच्छे प्रकार प्राप्त होवे, वैसे (तम्) उस (त्वा) तुझ को (मर्जयन्तः) शुद्ध कराते हुए (गोतमासः) अतिशय करके स्तुति करनेवाले (वयम्) हम लोग (प्रशंसामः) स्तुति से प्रशंसित करते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे मनुष्य लोग उत्तम यान अर्थात् सवारियों में घोड़ों को जोड़ कर शीघ्र देशान्तर को जाते हैं, वैसे ही विद्वानों के सङ्ग से विद्या के पाराऽवार को प्राप्त होते हैं ॥ ५ ॥ इस सूक्त में शरीर और यान आदि में संयुक्त करने योग्य अग्नि के दृष्टान्त से विद्वानों के गुणवर्णन से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हेऽग्ने पावकवत्प्रकाशमान धियावसुर्मतिभिः सह वाजम्भरं प्रातराशुमश्वं न मक्षु रयीणां पतिं जगम्यात् तथा त्वा तं मर्जयन्तो गोतमासो वयं प्रशंसामः ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (तम्) विद्वांसम् (त्वा) त्वाम् (वयम्) (पतिम्) पालयितारम् (अग्ने) विद्युद्वर्त्तमान (रयीणाम्) चक्रवर्त्तिराज्यश्रियादिधनानाम् (प्र) प्रकृष्टार्थे (शंसामः) स्तुमः (मतिभिः) मेधाविभिः सह। मतय इति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (गोतमासः) येऽतिशयेन गावो वेदाद्यर्थानां स्तोतारस्ते। गौरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) (आशुम्) शीघ्रगमनहेतुमश्वम् (न) इव (वाजम्भरम्) यो वाजं वेगं बिभर्त्ति तम् (मर्जयन्तः) शोधयन्तः (प्रातः) प्रातःकाले (मक्षु) शीघ्रम् (धियावसुः) धियां बुद्धीनां वासयिता (जगम्यात्) पुनः पुनर्भृशं ज्ञानानि गमयेत् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा मनुष्या यानेऽश्वान् योजयित्वा तूर्णं गच्छन्ति, तथैव विद्वद्भिः सह सङ्गत्य विद्यापारावारं प्राप्नुवन्ति ॥ ५ ॥ अत्र शरीरयानादिषु सम्प्रयोज्यस्याऽग्नेर्दृष्टान्तेन विद्वद्गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशी माणसे उत्तम वाहन अर्थात, घोडेस्वारी करून तात्काळ देशदेशांतरी जातात. तसे विद्वानांच्या संगतीने अमर्याद विद्या प्राप्त करता येते. ॥ ५ ॥