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वह्निं॑ य॒शसं॑ वि॒दथ॑स्य के॒तुं सु॑प्रा॒व्यं॑ दू॒तं स॒द्योअ॑र्थम्। द्वि॒जन्मा॑नं र॒यिमि॑व प्रश॒स्तं रा॒तिं भ॑र॒द्भृग॑वे मात॒रिश्वा॑ ॥

English Transliteration

vahniṁ yaśasaṁ vidathasya ketuṁ suprāvyaṁ dūtaṁ sadyoartham | dvijanmānaṁ rayim iva praśastaṁ rātim bharad bhṛgave mātariśvā ||

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Pad Path

वह्नि॑म्। य॒शस॑म्। वि॒दथ॑स्य। के॒तुम्। सु॒प्र॒ऽअ॒व्य॑म्। दू॒तम्। स॒द्यःऽअ॑र्थम्। द्वि॒ऽजन्मा॑नम्। र॒यिम्ऽइ॑व। प्र॒ऽश॒स्तम्। रा॒तिम्। भ॒र॒त्। भृग॑वे। मा॒त॒रिश्वा॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:60» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह ईश्वर कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (मातरिश्वा) अन्तरिक्ष में शयन करता वायु (भृगवे) भूजने वा पकाने के लिये (विदथस्य) युद्ध के (केतुम्) ध्वजा के समान (यशसम्) कीर्त्तिकारक (सुप्राव्यम्) उत्तमता से चलाने के योग्य (दूतम्) देशान्तर को प्राप्त करने (रातिम्) दान का निमित्त (प्रशस्तम्) अत्यन्त श्रेष्ठ (द्विजन्मानम्) वायु वा कारण से जन्मसहित (वह्निम्) सबको वहनेहारे अग्नि को (रयिमिव) उत्तम लक्ष्मी के समान (सद्योअर्थम्) शीघ्रगामी पृथिव्यादि द्रव्य को (भरत्) धरता है, वैसे तुम भी काम किया करो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे वायु बिजुली आदि वस्तु का धारण करके सब चराऽचर लोकों का धारण करता है, वैसे राजपुरुष विद्याधर्म धारणपूर्वक प्रजाओं को न्याय में रक्खें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स परेशः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा मातरिश्वा भृगवे विदथस्य केतुं यशसं सुप्राव्यं दूतं रातिं प्रशस्तं द्विजन्मानं वह्निं रयिमिव सद्योअर्थं भरद्धरति तथा यूयमप्याचरत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वह्निम्) पदार्थानां वोढारम् (यशसम्) कीर्त्तिकरम् (विदथस्य) विज्ञातव्यजगतोऽस्य मध्ये (केतुम्) ध्वजवद्वर्त्तमानम् (सुप्राव्यम्) सुष्ठु प्रावितं चालितुमर्हम् (दूतम्) देशान्तरप्रापकम् (सद्योअर्थम्) शीघ्रगामिपृथिव्यादि द्रव्यम् (द्विजन्मानम्) द्वाभ्यां वायुकारणाभ्यां जन्म यस्य तम् (रयिमिव) यथोत्तमां श्रियम् (प्रशस्तम्) श्रेष्ठतमम् (रातिम्) दातारम् (भरत्) धरति (भृगवे) भर्ज्जनाय परिपाचनाय (मातरिश्वा) आकाशे शयिता वायुः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा वायुः पावकादिवस्तु धृत्वा सर्वाञ्चराऽचराँल्लोकान् धरति तथा राजपुरुषैर्विद्या धर्मधारणपुरःसरं प्रजा न्याये धर्त्तव्याः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात शरीर व यान इत्यादीमध्ये संयुक्त करण्यायोग्य अग्नीच्या दृष्टान्ताने व विद्वानांच्या गुणवर्णनाने सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा वायू, विद्युत इत्यादी वस्तू धारण करून सर्व चराचर लोकांना धारण करतो. तसे राजपुरुषांनी विद्या, धर्मधारणा करून प्रजेला न्याय द्यावा. ॥ १ ॥