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व॒या इद॑ग्ने अ॒ग्नय॑स्ते अ॒न्ये त्वे विश्वे॑ अ॒मृता॑ मादयन्ते। वैश्वा॑नर॒ नाभि॑रसि क्षिती॒नां स्थूणे॑व॒ जनाँ॑ उप॒मिद्य॑यन्थ ॥

English Transliteration

vayā id agne agnayas te anye tve viśve amṛtā mādayante | vaiśvānara nābhir asi kṣitīnāṁ sthūṇeva janām̐ upamid yayantha ||

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Pad Path

व॒याः। इत्। अ॒ग्ने॒। अ॒ग्नयः॑। ते॒। अ॒न्ये। त्वे इति॑। विश्वे॑। अ॒मृताः॑। मा॒द॒य॒न्ते॒। वैश्वा॑नर। नाभिः॑। अ॒सि॒। क्षि॒ती॒नाम्। स्थूणा॑ऽइव। जना॑न्। उ॒प॒ऽमित्। य॒य॒न्थ॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:59» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उनसठवें सूक्त का आरम्भ है, उस के प्रथम मन्त्र में अग्नि और ईश्वर के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (वैश्वानर) सम्पूर्ण विश्व को नियम में रखने हारे (अग्ने) जगदीश्वर ! जिस (ते) आप के सकाश से जो (अन्ये) भिन्न (विश्वे) सब (अमृताः) अविनाशी (अग्नयः) सूर्य आदि ज्ञानप्रकाशक पदार्थों के तुल्य जीव (त्वे) आप में (वयाः) शाखा के (इत्) समान बढ़ के (मादयन्ते) आनन्दित होते हैं, जो आप (क्षितीनाम्) मनुष्यादिकों के (नाभिः) मध्यवर्त्ति (असि) हो (जनान्) मनुष्यादिकों को (उपमित्) धर्मविद्या में स्थापित करते हुए (स्थूणेव) धारण करनेवाले खंभे के समान (ययन्थ) सबको नियम में रखते हो, वही आप हमारे उपास्य देवता हो ॥ १ ॥
Connotation: - जैसे वृक्ष अपनी शाखा और खंभे गृहों को धारण करके आनन्दित करते हैं, वैसे ही परमेश्वर सबको धारण करके आनन्द देता है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्नीश्वरगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे वैश्वानराऽग्ने जगदीश्वर ! यस्य ते तव ये त्वत्तोऽभिन्ना विश्वेऽमृता अग्नय इव जीवास्त्वे त्वयि वया इन्मादयन्ते यस्त्वं क्षितीनान्नाभिरसि जनानुपमित् सन् स्थूणेव ययन्थ यच्छ सोऽस्माभिरुपासनीयः ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वयाः) शाखाः। वयाः शाखा वेतेर्वातायना भवन्ति । (निरु०१.४) (इत्) इव (अग्ने) सर्वाधारेश्वर (अग्नयः) सूर्यादय इव ज्ञानप्रकाशकाः (ते) तव (अन्ये) त्वत्तो भिन्नाः (त्वे) त्वयि (विश्वे) सर्वे (अमृताः) अविनाशिनो जीवाः (मादयन्ते) हर्षयन्ति (वैश्वानर) यो विश्वान् सर्वान् पदार्थान् नयति तत्सम्बुद्धौ (नाभिः) मध्यवर्त्तिः (असि) (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (स्थूणेव) यथा धारकस्तम्भः (जनान्) मनुष्यादीन् (उपमित्) य उप समीपे मिनोति प्रक्षिपति सः (ययन्थ) यच्छति ॥ १ ॥
Connotation: - यथा वृक्षः शाखाः स्थूणाश्च गृहं धृत्वाऽऽनन्दयन्ति, तथैव परमेश्वरः सर्वान् धृत्वाऽऽनन्दयति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वैश्वानर शब्दार्थ वर्णनाने याच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जसे वृक्ष आपल्या फांद्यांना व खांब घरांना धारण करून (सर्वांना) आनंदित करतो. तसेच परमेश्वर सर्वांना धारण करून आनंद देतो. ॥ १ ॥