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द॒धुष्ट्वा॒ भृग॑वो॒ मानु॑षे॒ष्वा र॒यिं न चारुं॑ सु॒हवं॒ जने॑भ्यः। होता॑रमग्ने॒ अति॑थिं॒ वरे॑ण्यं मि॒त्रं न शेवं॑ दि॒व्याय॒ जन्म॑ने ॥

English Transliteration

dadhuṣ ṭvā bhṛgavo mānuṣeṣv ā rayiṁ na cāruṁ suhavaṁ janebhyaḥ | hotāram agne atithiṁ vareṇyam mitraṁ na śevaṁ divyāya janmane ||

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Pad Path

द॒धुः। त्वा॒। भृग॑वः। मानु॑षे॒षु। आ। र॒यिम्। न। चारु॑म्। सु॒ऽहव॑म्। जने॑भ्यः। होता॑रम्। अ॒ग्ने॒। अति॑थिम्। वरे॑ण्यम्। मि॒त्रम्। न। शेव॑म्। दि॒व्याय॑। जन्म॑ने ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:58» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश स्वप्रकाशस्वरूप जीव ! तू जिस (त्वा) तुझको (भृगवः) परिपक्व ज्ञानवाले विद्वान् (मानुषेषु) मनुष्यों में (जनेभ्यः) विद्वानों से विद्या को प्राप्त होके (चारुम्) सुन्दरस्वरूप (सुहवम्) सुखों के देनेहारे (रयिम्) धन के (न) समान (होतारम्) दानशील (अतिथिम्) अनियत स्थिति अर्थात् अतिथि के सदृश देह-देहान्तर और स्थान-स्थानान्तर में जानेहारा (वरेण्यम्) ग्रहण करने योग्य (शेवम्) सुखरूप जीव को प्राप्त होके (दिव्याय) शुद्ध (जन्मने) जन्म के लिये (मित्रं न) मित्र के सदृश तुझ को (आदधुः) सब प्रकार धारण करते हैं, उसी को जीव जान ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मनुष्य विद्या वा लक्ष्मी तथा मित्रों को प्राप्त होकर सुखों को प्राप्त होते हैं, वैसे ही जीव के स्वरूप को जाननेवाले विद्वान् लोग अत्यन्त सुखों को प्राप्त होते हैं ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने स्वप्रकाशस्वरूप ! त्वं यं त्वा भृगवो मानुषेषु जनेभ्यश्चारुं सुहवं रयिं न धनमिव होतारमतिथिं वरेण्यं शेवं लब्ध्वा दिव्याय जन्मने मित्रं न सखायमिव त्वाऽऽदधुस्तमेव जीवं विजानीहि ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (दधुः) धरन्तु (त्वा) त्वाम् (भृगवः) परिपक्वविज्ञाना मेधाविनो विद्वांसः (मानुषेषु) मानवेषु (आ) समन्तात् (रयिम्) धनम् (न) इव (चारुम्) सुन्दरम् (सुहवम्) सुखेन होतुं योग्यम् (जनेभ्यः) मनुष्यादिभ्यः (होतारम्) दातारम् (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (अतिथिम्) न विद्यते नियता तिथिर्यस्य तम् (वरेण्यम्) वरीतुमर्हं श्रेष्ठम् (मित्रम्) सखायम् (न) इव (शेवम्) सुखस्वरूपम्। शेवमिति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (दिव्याय) दिव्यभोगान्विताय (जन्मने) प्रादुर्भावाय ॥ ६ ॥
Connotation: - यथा मनुष्या विद्याश्रियौ मित्रांश्च प्राप्य सुखमेधन्ते, तथैव जीवस्वरूपस्य वेदितारोऽत्यन्तानि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माणसे विद्या, लक्ष्मी व मित्रांना प्राप्त करून सुखी होतात. तसेच जीवाच्या स्वरूपाला जाणणारे विद्वान अत्यंत सुखी होतात. ॥ ६ ॥