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दे॒वी यदि॒ तवि॑षी॒ त्वावृ॑धो॒तय॒ इन्द्रं॒ सिष॑क्त्यु॒षसं॒ न सूर्यः॑। यो धृ॒ष्णुना॒ शव॑सा॒ बाध॑ते॒ तम॒ इय॑र्ति रे॒णुं बृ॒हद॑र्हरि॒ष्वणिः॑ ॥

English Transliteration

devī yadi taviṣī tvāvṛdhotaya indraṁ siṣakty uṣasaṁ na sūryaḥ | yo dhṛṣṇunā śavasā bādhate tama iyarti reṇum bṛhad arhariṣvaṇiḥ ||

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Pad Path

दे॒वी। यदि॑। तवि॑षी। त्वाऽवृ॑धा। ऊ॒तये॑। इन्द्र॑म्। सिष॑क्ति। उ॒षस॑म्। न। सूर्यः॑। यः। धृ॒ष्णुना॑। शव॑सा। बाध॑ते। तमः॑। इय॑र्ति। रे॒णुम्। बृ॒हत्। अ॒र्ह॒रि॒ऽस्वनिः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:56» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! (यः) जो (अर्हरिष्वणिः) अहिंसक, धार्मिक और पापी लोगों का विवेककर्त्ता पुरुष (धृष्णुना) दृढ़ (शवसा) बल से (न) जैसे (सूर्य्यः) रवि (उषसम्) प्रातःसमय को प्राप्त हो के (बृहत्) बड़े (तमः) अन्धकार को दूर कर देता है, वैसे तेरे दुःख को दूर कर देता है। हे पुरुष ! (यदि) जो (त्वावृधा) तुझे सुख से बढ़ाने हारी (तविषी) पूर्ण बलयुक्त (देवी) विदुषी अतीव प्रिया स्त्री (रेणुम्) रमणीयस्वरूप तुझ को (इयर्त्ति) प्राप्त होती है और (ऊतये) रक्षादि के वास्ते (इन्द्रम्) परम सुखप्रद तुझे (सिषक्ति) उत्तम सुख से युक्त करती है, सो तू और वह स्त्री तुम दोनों एक-दूसरे के आनन्द के लिये सदा वर्त्ता करो ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जब स्त्री से प्रसन्न पुरुष और पुरुष से प्रसन्न स्त्री होवे, तभी गृहाश्रम में निरन्तर आनन्द होवे ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशौ स्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे स्त्रि ! योऽर्हरिष्वणिर्धृष्णुना शवसोषसं प्राप्य सूर्यो बृहत्तमो न दुःखं बाधते। हे पुरुष ! यदि त्वावृधा तविषी देवी रेणुं त्वामियर्त्यूतये इन्द्रं त्वा सिषक्ति स सा च युवां परस्परस्यानन्दाय सततं वर्त्तेयाथाम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (देवी) दिव्यगुणैर्वर्त्तमाना स्त्री (यदि) चेत् (तविषी) बलादिगुणयुक्ता (त्वावृधा) या त्वां वर्धयते सा (ऊतये) रक्षणाद्याय (इन्द्रम्) परमसुखप्रदं पतिम् (सिषक्ति) समवैति (उषसम्) प्रत्युषःकालम् (न) इव (सूर्य्यः) सविता (यः) (धृष्णुना) धृष्टेन दृढेन (शवसा) बलेन (बाधते) निवर्त्तयति (तमः) रात्रिम् (इयर्त्ति) प्राप्नोति (रेणुम्) विद्यादिशुभप्राप्तम् (बृहत्) महत् (अर्हरिष्वणिः) योऽर्हान् हिंसकाँश्च सम्भजति सः ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यदा स्त्रीप्रियः पुरुषः पुरुषप्रिया भार्या च भवेत्तदैव मङ्गलं वर्द्धेत ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जेव्हा स्त्री पुरुष परस्पर प्रसन्न असतील तेव्हा गृहस्थाश्रमात निरंतर आनंद निर्माण होतो. ॥ ४ ॥