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स तु॒र्वणि॑र्म॒हाँ अ॑रे॒णु पौंस्ये॑ गि॒रेर्भृ॒ष्टिर्न भ्रा॑जते तु॒जा शवः॑। येन॒ शुष्णं॑ मा॒यिन॑माय॒सो मदे॑ दु॒ध्र आ॒भूषु॑ रा॒मय॒न्नि दाम॑नि ॥

English Transliteration

sa turvaṇir mahām̐ areṇu pauṁsye girer bhṛṣṭir na bhrājate tujā śavaḥ | yena śuṣṇam māyinam āyaso made dudhra ābhūṣu rāmayan ni dāmani ||

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Pad Path

सः। तु॒र्वणिः॑। म॒हान्। अ॒रे॒णु। पौंस्ये॑। गि॒रेः। भृ॒ष्टिः। न। भ्रा॒ज॒ते॒। तु॒जा। शवः॑। येन॑। शुष्ण॑म्। मा॒यिन॑म्। आ॒य॒सः। मदे॑। दु॒ध्रः। आ॒भूषु॑। रा॒मय॑त्। नि। दाम॑नि ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:56» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे उत्तम वर की इच्छा करनेहारी कन्या ! जैसे तू जो (तुर्वणिः) शीघ्र सुखकारी (दुध्रः) बल से पूर्ण (आयसः) विज्ञान से युक्त (महान्) सर्वोत्कृष्ट (पौंस्ये) पुरुषार्थयुक्त व्यवहार में प्रवीण (तुजा) दुःखों का नाशक (आभूषु) सब प्रकार सबको सुभूषितकारक (अरेणु) क्षयरहित कर्म को (मदे) हर्षित होने में (रमयत्) क्रीड़ा का हेतु (शवः) उत्तम बल को प्राप्त हो के (न) जैसे (गिरेः) मेघ के (भृष्टिः) उत्तम शिखर (भ्राजते) प्रकाशित होते हैं, वैसे (तम्) उस (शुष्णम्) बलयुक्त (मायिनम्) अत्युत्तम बुद्धिमान् वर को (येन) जिस बल से (दामनि) सुखदायक गृहाश्रम में स्वीकार करती हो, वैसे (सः) वह वर भी तुझे उसी बल से प्रेमबद्ध करे ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। अति उत्तम विवाह वह है, जिसमें तुल्य रूप स्वभाव युक्त कन्या और वर का सम्बन्ध होवे, परन्तु कन्या से वर का बल और आयु दूना वा ड्योढ़ा होना चाहिये ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे वरमिच्छुके कन्ये ! यथा त्वं यस्तुर्वणिर्दुध्र आयसो महान् पौंस्ये तुजाऽऽभूष्वरेणु मदे रामयच्छवः प्राप्य गिरेर्भृष्टिरुन्नतो नेव भ्राजते तं शुष्णं मायिनं जनं दामनि निबध्नासि तथा स वरोऽपि तेन त्वां निबध्नीयात् ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (सः) उक्तार्थः (तुर्वणिः) शीघ्रानन्ददाता। तुर्वणिस्तूर्णवनिः। (निरु०६.१४) महान् गुणैर्महत्त्वयुक्तः (अरेणु) अहिंसनीयम् (पौंस्ये) पुंसो भवे यौवने (गिरेः) मेघस्य (भृष्टिः) भृज्जन्ति परिपचन्ति यस्यां वृष्टौ सा (न) इव (भ्राजते) प्रकाशते (तुजा) तोजति हिनस्ति दुःखानि येन तेन (शवः) बलम् (येन) बलेन (शुष्णम्) बलवन्तम् (मायिनम्) प्रशंसितप्रज्ञादियुक्तम् (आयसः) विज्ञानात् (मदे) हर्षयुक्ते (दुध्रः) बलेन पूर्णः। अत्र वर्णव्यत्ययेन हस्य धः। (आभूषु) समन्ताद्भूषिता जना येन तत् (रामयत्) रामं रमणं कारयितृ (नि) नितराम् (दामनि) यः सुखानि ददाति तस्मिन् गृहाश्रमे ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। स विवाह उत्तमो यत्र समानरूपशीलौ कन्यावरौ स्यातां परन्तु कन्यायाः सकाशाद् वरस्य बलायुषी द्विगुणे सार्द्धैकगुणे वा भवेताम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. अति उत्तम विवाह तोच आहे. ज्यात समान रूप स्वभावयुक्त कन्या व वराचा संबंध व्हावा; परंतु मुलीपेक्षा मुलाचे बल व वय दुप्पट किंवा दीडपट असावे. ॥ ३ ॥