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ए॒ष प्र पू॒र्वीरव॒ तस्य॑ च॒म्रिषोऽत्यो॒ न योषा॒मुद॑यंस्त भु॒र्वणिः॑। दक्षं॑ म॒हे पा॑ययते हिर॒ण्ययं॒ रथ॑मा॒वृत्या॒ हरि॑योग॒मृभ्व॑सम् ॥

English Transliteration

eṣa pra pūrvīr ava tasya camriṣo tyo na yoṣām ud ayaṁsta bhurvaṇiḥ | dakṣam mahe pāyayate hiraṇyayaṁ ratham āvṛtyā hariyogam ṛbhvasam ||

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Pad Path

ए॒षः। प्र। पू॒र्वीः। अव॑। तस्य॑। च॒म्रिषः॑। अत्यः॑। न। योषा॑म्। उत्। अ॒यं॒स्त॒। भु॒र्वणिः॑। दक्ष॑म्। म॒हे। पा॒य॒य॒ते॒। हि॒र॒ण्ययम्। रथ॑म्। आ॒ऽवृत्य॑। हरि॑ऽयोगम्। ऋभ्व॑सम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:56» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छप्पनवें सूक्त का आरम्भ है, उस के पहिले मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - जो (एषः) यह (भुर्वणिः) धारण वा पोषण करनेवाला सभा का अध्यक्ष वा सूर्य (न) जैसे (अत्यः) घोड़ा घोड़ियों से संयोग करता है, वैसे (योषाम्) विद्वान् स्त्री से युक्त हो के (तस्य) उस परमैश्वर्य की प्राप्ति के लिये (चम्रिषः) भोगों को करनेवाली (पूर्वीः) सनातन प्रजा को (प्रावोदयंस्त) अच्छे प्रकार अधर्म वा निकृष्टता से निवृत्त कर वह उस प्रजा के वास्ते (महे) पूजनीय मार्ग में कान आदि इन्द्रियों को (आवृत्य) युक्त कर (हिरण्यम्) बहुत तेज वा सुवर्ण (ऋभ्वसम्) मनुष्यादिकों के प्रक्षेपण करनेवाला (हरियोगम्) अग्नियुक्त वा अश्वादि युक्त हुए (दक्षम्) बल चतुर शिल्पी मनुष्य युक्त (रथम्) यानसमूह को (आवृत्य) सामग्री से आच्छादन करके सुखरूपी रसों को (पाययते) पान करता है, वह सब से मान्य को प्राप्त होता है ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। उपदेशक अपने तुल्य विदुषी स्त्री के साथ विवाह करके जैसे आप पुरुषों को उपदेश और बालकों को पढ़ावे, वैसे उसकी स्त्री स्त्रियों को उपदेश और कन्याओं को पढ़ावें, ऐसे करने से किसी ओर से अविद्या और भय से दुःख नहीं हो सकता ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्रादावध्यापकोपदेशकगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

य एष भुर्वणिस्तस्य चम्रिषः पूर्वीः प्रजा उत्पादयितुमत्यो न योषामुदयँस्त स तस्यै प्रजायै महे सत्योपदेशैः श्रोत्राण्यावृत्य हिरण्ययमृभ्वसं हरियोगं रथं दक्षं च प्रापय्य पाययते स सर्वैर्माननीयो भवति ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (एषः) अध्यापक उपदेशको वा (प्र) प्रकृष्टार्थे (पूर्वीः) प्राचीनाः सनातनीः प्रजाः (अव) विरुद्धार्थे (तस्य) परमैश्वर्य्यस्य प्राप्तये (चम्रिषः) चाम्यन्त्यदन्ति भोगाँस्तान्। अत्र बाहुलकादौणादिक इसिः प्रत्ययो रुडागमश्च। (अत्यः) अश्वः। अत्य इत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (न) इव (योषाम्) भार्य्याम् (उत्) (अयँस्त) उद्यच्छति (भुर्वणिः) बिभर्त्ति यः सः। अत्र भृञ् धातोर्बाहुलकादौणादिकः क्वणिः प्रत्ययः। (दक्षम्) बलं चातुर्य्यं वा (महे) पूज्ये व्यवहारे (पाययते) रक्षां कार्यते (हिरण्ययम्) तेजः सुवर्णं वा प्रचुरं यस्मिँस्तम् (रथम्) यानसमूहम् (आवृत्य) सामग्र्याच्छाद्य (हरियोगम्) हरीणामश्वादीनां योगो यस्मिँस्तम् (ऋभ्वसम्) ऋभून् मनुष्यादीन् पदार्थान् वाऽस्यन्ति येन तम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। उपदेशकः स्वसदृशी विदुषीं स्त्रियं परिणीय यथा स्वयं पुरुषानुपदिशेद् बालकानध्यापयेत् तथा तत्स्त्री स्त्रिय उपदिशेत् कन्याश्च पाठयेदेवं कृते कुतश्चिदप्यविद्याभये न पीडयेताम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सूर्य किंवा विद्वानाच्या गुणवर्णनाने या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. उपदेशकाने स्वतः सारख्याच विदुषी स्त्रीबरोबर विवाह करावा. जसे स्वतः पुरुषांना उपदेश व बालकांना शिक्षण देतो तसे त्याच्या पत्नीनेही स्त्रियांना उपदेश व बालिकांना शिक्षण द्यावे. असे केल्यामुळे कुठूनही अविद्या व भय यांनी दुःख होऊ शकत नाही. ॥ १ ॥