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दु॒रो अश्व॑स्य दु॒र इ॑न्द्र॒ गोर॑सि दु॒रो यव॑स्य॒ वसु॑न इ॒नस्पतिः॑। शि॒क्षा॒न॒रः प्र॒दिवो॒ अका॑मकर्शनः॒ सखा॒ सखि॑भ्य॒स्तमि॒दं गृ॑णीमसि ॥

English Transliteration

duro aśvasya dura indra gor asi duro yavasya vasuna inas patiḥ | śikṣānaraḥ pradivo akāmakarśanaḥ sakhā sakhibhyas tam idaṁ gṛṇīmasi ||

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Pad Path

दु॒रः। अश्व॑स्य। दु॒रः। इ॒न्द्र॒। गोः। अ॒सि॒। दु॒रः। यव॑स्य। वसु॑नः। इ॒नः। पतिः॑। शि॒क्षा॒ऽन॒रः। प्र॒ऽदिवः॑। अका॑मऽकर्शनः। सखा॑। सखि॑ऽभ्यः। तम्। इ॒दम्। गृ॒णी॒म॒सि॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:53» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) विद्वन् ! जो (अकामकर्शनः) आलस्ययुक्त मनुष्यों को कृश करनेवाले (शिक्षानरः) शिक्षाओं को प्राप्त करने वा (सखिभ्यः) मित्रों के (सखा) मित्र (पतिः) पालन करने वा (इनः) ईश्वर के तुल्य सामर्थ्ययुक्त आप (अश्वस्य) व्याप्तिकारक अग्नि आदि वा तुरङ्ग आदि के (दुरः) द्वारों को प्राप्त होके सुख देनेवाली (गोः) वाणी वा दूध देनेवाली गौ के (दुरः) सुख देनेवाले द्वारों को जान (यवस्य) उत्तम यव आदि अन्न (प्रदिवः) उत्तम विज्ञान प्रकाश और (वसुनः) उत्तम धन देनेवाले (असि) हैं (तम्) उस आपकी (इदम्) पूजा वा सत्कारपूर्वक (गृणीमसि) स्तुति करते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। परमेश्वर के तुल्य धार्मिक विद्वान् के विना किसी के लिये सब पदार्थ वा सब सुखों के देनेवाला कोई नहीं है, परन्तु जो निश्चय करके सबके मित्र शिक्षाओं को प्राप्त किये हुए आलस्य को छोड़कर, ईश्वर की उपासना विद्या वा विद्वानों के संग को प्रीति से सेवन करनेवाले मनुष्य हैं, वे ही इन सब सुखों को प्राप्त होते हैं, आलसी मनुष्य नहीं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे इन्द्र विद्वन् ! योऽकामकर्शनः शिक्षानरः सखिभ्यः सखा पतिरिन इव त्वमश्वस्य दुरो गोर्दुरोऽभिप्राप्य यवस्य प्रदिवो दुरोऽधिष्ठितः सन् वसुनो दाताऽसि तं त्वामिदं वयं गृणीमसि ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (दुरः) सुखैः संवारकाणि द्वाराणि (अश्वस्य) व्याप्तिकारकाग्न्यादेस्तुरङ्गस्य वा (दुरः) (इन्द्र) विद्वन् (गोः) सुसंस्कृताया वाचः (असि) (दुरः) (यवस्य) उत्तमस्य यवादेरन्नस्य (वसुनः) सर्वोत्तमस्य द्रव्यस्य (इनः) ईश्वरः। इन इतीश्वरनामसु पठितम्। (निघं०२.२२) (पतिः) पालयिता (शिक्षानरः) यः शिक्षां नृणाति प्राप्नोति स शिक्षाया नरः शिक्षानरः। अत्र सर्वधातुभ्योऽजयं वक्तव्यः इति नॄधातोरच्प्रत्ययः। (प्रदिवः) प्रकृष्टस्य न्यायप्रकाशस्य (अकामकर्शनः) योऽकामानलसान् कृशति तनूकरोति सः (सखा) सुहृत् (सखिभ्यः) सुहृद्भ्यः (तम्) उक्तार्थम् (इदम्) अर्चनं सत्करणं यथा स्यात्तथा (गृणीमसि) अर्चामः स्तुमः ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। न हि परमेश्वरतुल्येन धार्मिकेण विदुषा विना कस्मैचित् सर्वपदार्थानां सुखानां च प्रदाता कश्चिदस्ति, परन्तु ये खलु सर्वमित्राः शिक्षाप्राप्ता मनुष्याः सन्ति त एवैतत् सर्वसुखं लभन्ते नेतरे ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. परमेश्वराप्रमाणे धार्मिक विद्वानाशिवाय कोणीही सर्व पदार्थ व सुख देणारा नाही; परंतु निश्चयपूर्वक सर्वांचे मित्र असणारी, शिक्षण प्राप्त केलेली, आळस सोडून उद्योग करणारी, ईश्वराची उपासना करणारी, विद्वानांचा संग प्रेमाने स्वीकारणारी माणसेच या सुखांना प्राप्त करू शकतात, आळशी नव्हे. ॥ २ ॥