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यदिन्न्वि॑न्द्र पृथि॒वी दश॑भुजि॒रहा॑नि॒ विश्वा॑ त॒तन॑न्त कृ॒ष्टयः॑। अत्राह॑ ते मघव॒न्विश्रु॑तं॒ सहो॒ द्यामनु॒ शव॑सा ब॒र्हणा॑ भुवत् ॥

English Transliteration

yad in nv indra pṛthivī daśabhujir ahāni viśvā tatananta kṛṣṭayaḥ | atrāha te maghavan viśrutaṁ saho dyām anu śavasā barhaṇā bhuvat ||

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Pad Path

यत्। इत्। नु। इ॒न्द्र॒। पृ॒थि॒वी। दश॑ऽभुजिः। अहा॑नि। विश्वा॑। त॒तन॑न्त। कृ॒ष्टयः॑। अत्र॑। अह॑। ते॒। म॒घ॒ऽव॒न्। विऽश्रु॑तम्। सहः॑। द्याम्। अनु॑। शव॑सा ब॒र्हणा॑। भु॒व॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:52» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह सभाध्यक्ष क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) उत्कृष्ट धन और विद्या के ऐश्वर्य से युक्त (इन्द्र) सभा सेनाध्यक्ष ! आप (यत्) जो (दशभुजिः) दश इन्द्रियों से (पृथिवी) भूमि को भोगते हो (ते) आप के (बर्हणा) सब सुख प्राप्त कराने वा (शवसा) (अह) बल से ही (द्याम्) राज्यपालन (अनुविश्रुतम्) अनुकूल कीर्ति करानेवाला यश (सहः) बल (भुवत्) होवे, उससे युक्त होके आप प्रयत्न कीजिये, जिससे (अत्र) इस राज्य में (कृष्टयः) मनुष्य लोग (विश्वा) सब (अहानि) दिनों को (इत्) ही सुख से (नु) जल्दी (ततनन्त) विस्तार करें ॥ ११ ॥
Connotation: - राजपुरुषों को चाहिये कि जैसे अपने राज्य में सुखों की वृद्धि और अनेक प्रकार से गुणों की प्राप्ति हो, वैसा अनुष्ठान करें ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सभाध्यक्षः किं कुर्यादित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र ! त्वया यद्या दशभुजिः पृथिवी भुज्यते यस्य ते तव बर्हणा शवसाह द्यामनु विश्रुतं यशस्सहो भुवत् तेन सहितस्त्वं प्रयतस्व, यतोऽत्र राज्ये कृष्टयो विश्वान्यहानीदेव सुखानि नु ततनन्त विस्तारयेयुः ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (यत्) वक्ष्यमाणम् (इत्) एव (नु) शीघ्रम् (इन्द्र) सभासेनाध्यक्ष (पृथिवी) भूमिः (दशभुजिः) या दशभिरिन्द्रियैर्भुज्यते सा (अहानि) दिनानि (विश्वा) सर्वाणि (ततनन्त) विस्तीर्णानि भवन्ति (कृष्टयः) कृषन्ति विलिखन्ति स्वानि कर्माणि ये ते मनुष्याः। कृष्टय इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (अत्र) अस्मिन् व्यवहारे (अह) विनिग्रहार्थे (ते) तव (मघवन्) उत्कृष्टधनविद्यैश्वर्ययुक्त (विश्रुतम्) यद्विविधं श्रूयते तद्यशः (सहः) बलम् (द्याम्) राजपालनविनयप्रकाशम् (अनु) आनुकूल्ये (शवसा) बलेन (बर्हणा) सर्वसुखप्रापिकया क्रियया। बर्हणा इति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.३) अनेन प्राप्त्यर्थो गृह्यते। (भुवत्) भवेत्। अत्र लेटि बहुलं छन्दसि (अष्टा०२.४.७३) इति शपो लुक्। भूसुवोस्तिङि (अष्टा०७.३.८८) इति गुणनिषेधादुवङादेशः ॥ ११ ॥
Connotation: - राजपुरुषैः स्वराज्ये सुखानां वृद्धिर्विविधगुणप्राप्तिश्च यथा स्यात् तथैवानुष्ठेयमिति ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजपुरुषांनी जशी आपल्या राज्यात सुखाची वृद्धी व गुणांची प्राप्ती होईल तसे प्रयत्न करावेत. ॥ ११ ॥