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इ॒दं नमो॑ वृष॒भाय॑ स्व॒राजे॑ स॒त्यशु॑ष्माय त॒वसे॑ऽवाचि। अ॒स्मिन्नि॑न्द्र वृ॒जने॒ सर्व॑वीराः॒ स्मत्सू॒रिभि॒स्तव॒ शर्म॑न्त्स्याम ॥

English Transliteration

idaṁ namo vṛṣabhāya svarāje satyaśuṣmāya tavase vāci | asminn indra vṛjane sarvavīrāḥ smat sūribhis tava śarman syāma ||

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Pad Path

इ॒दम्। नमः॑। वृ॒ष॒भाय॑। स्व॒ऽराजे॑। स॒त्यऽशु॑ष्माय। त॒वसे॑। अ॒वा॒चि॒। अ॒स्मिन्। इ॒न्द्र॒। वृ॒जने॑। सर्व॑ऽवीराः। स्मत्। सू॒रिऽभिः॑। तव॑। शर्म॑न्। स्या॒म॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:51» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परम पूजनीय सभापते ! जैसे (सूरिभिः) विद्वान् लोग (वृषभाय) सुख की वृष्टि करने (सत्यशुष्माय) विनाशरहित बलयुक्त (तवसे) अति बल से प्रवृद्ध (स्वराजे) अपने आप प्रकाशमान परमेश्वर को (इदम्) इस (नमः) सत्कार को (अवाचि) कहते हैं, वैसे हम भी करें, ऐसे करके हम लोग (तव) आपके (अस्मिन्) इस जगत् वा इस (वृजने) दुःखों को दूर करनेवाले बल से युक्त (शर्मन्) गृह में (स्मत्) अच्छे प्रकार सुखी (स्याम) होवें ॥ १५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को विद्वान् के साथ वर्त्तमान रह कर परमेश्वर ही की उपासना, पूर्णप्रीति से विद्वानों का सङ्ग कर परम आनन्द को प्राप्त करना और कराना चाहिये ॥ १५ ॥ इस सूक्त में सूर्य अग्नि और बिजुली आदि पदार्थों का वर्णन, बलादि की प्राप्ति, अनेक अलङ्कारों के कथन से विविध अर्थों का वर्णन और सभाध्यक्ष तथा परमेश्वर के गुणों का प्रतिपादन किया है। इससे इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये।
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे इन्द्र सभेश ! यथा सूरिभिर्वृषभाय सत्यशुष्माय तवसे स्वराजे जगदीश्वरायेदं नमोऽवाच्युच्यते तथास्मदादिभिरप्युच्यत एवं विधाय वयं तवास्मिन् वृजने शर्मन् स्मत् सुष्ठुतया सर्ववीराः स्याम भवेम ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (इदम्) प्रत्यक्षम् (नमः) सत्करणम् (वृषभाय) सुखवृष्टेः कर्त्रे (स्वराजे) स्वयं राजते तस्मै सर्वाधिपतये परमेश्वराय (सत्यशुष्माय) सत्यमविनश्वरं शुष्मं बलं यस्य तस्मै (तवसे) बलाय। तव इति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (अवाचि) उच्यते (अस्मिन्) जगति यक्ष्यमाणे वा (इन्द्र) परमपूज्य (वृजने) वर्जन्ति दुःखानि येन बलेन तस्मिन्। वृजनमिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (सर्ववीराः) सर्वे च वीराश्च ते सर्ववीराः (स्मत्) श्रेष्ठार्थे (सूरिभिः) मेधाविभिः सह (तव) (शर्मन्) शर्मणि गृहे। शर्मेति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (स्याम) भवेम ॥ १५ ॥
Connotation: - सर्वैर्मनुष्यैर्विद्वद्भिः सह वर्त्तमानैर्भूत्वा परमेश्वरस्योपासनां पूर्णप्रीत्या विद्वत्सङ्गं च कृत्वाऽस्मिन् संसारे परमानन्दः प्राप्तव्यः प्रापयतिव्यश्चेति ॥ १५ ॥ अस्मिन् सूक्ते सूर्याग्निविद्युदादिपदार्थवर्णनं बलादिप्रापणमनेकालङ्कारोक्त्या विविधार्थवर्णनं सभाध्यक्षपरमेश्वरगुणप्रतिपादनं चोक्तमत एतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम्।
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी विद्वानांबरोबर राहून, त्यांचा संग करून पूर्ण भक्तीने परमेश्वराची उपासना करून आनंद प्राप्त केला व करविला पाहिजे. ॥ १५ ॥