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इन्द्रो॑ अश्रायि सु॒ध्यो॑ निरे॒के प॒ज्रेषु॒ स्तोमो॒ दुर्यो॒ न यूपः॑। अ॒श्व॒युर्ग॒व्यू र॑थ॒युर्व॑सू॒युरिन्द्र॒ इद्रा॒यः क्ष॑यति प्रय॒न्ता ॥

English Transliteration

indro aśrāyi sudhyo nireke pajreṣu stomo duryo na yūpaḥ | aśvayur gavyū rathayur vasūyur indra id rāyaḥ kṣayati prayantā ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। अ॒श्रा॒यि॒। सु॒ऽध्यः॑। नि॒रे॒के। प॒ज्रेषु॑। स्तोमः॑। दुर्यः॑। न। यूपः॑। अ॒श्व॒ऽयुः। ग॒व्युः। र॒थ॒ऽयुः। व॒सु॒ऽयुः। इन्द्रः॑। इत्। रा॒यः। क्ष॒य॒ति॒। प्रऽय॒न्ता ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:51» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:10» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसे गुणवाला हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जो (अश्वयुः) अपने अश्वों (गव्युः) अपने गौ पृथिवी इन्द्रिय किरणों (रथयुः) अपने रथ और (वसूयुः) अपने द्रव्यों की इच्छा और (प्रयन्ता) अच्छे प्रकार नियम करनेवाले के (इत्) समान (इन्द्रः) विद्यादि ऐश्वर्ययुक्त विद्वान् (रायः) धनों को (क्षयति) निवासयुक्त करता है, वह (सुध्यः) जो उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् मनुष्य हैं, उनसे (दुर्यः) गृहसम्बन्धी (यूपः) खंभा के (न) समान (इन्द्रः) विद्यादि ऐश्वर्यवान् विद्वान् (निरेके) शङ्कारहित (पज्रेषु) शिल्पादि व्यवहारों में (स्तोमः) स्तुति करने योग्य (अश्रायि) सेवनयुक्त होता है ॥ १४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य से बहुत उत्तम-उत्तम कार्य सिद्ध होते हैं, वैसे विद्वान् वा अग्नि जलादि के सकाश से रथ की सिद्धि के द्वारा धन की प्राप्ति होती है ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृग्गुणो भवेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

योऽश्वयुर्गव्यूरथयुर्वसूयुरिदेवेन्द्रो रायः क्षयति स मनुष्यैर्ये सुध्यः सन्ति तैर्दुर्यो यूपो नेवायमिन्द्रो निरेके पज्रेषु स्तोमः स्तोतुमर्होऽश्रायि ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) सर्वाधीशः (अश्रायि) श्रियेत सेव्येत (सुध्यः) शोभना धीर्येषान्ते। अत्र छन्दस्युभयथा। (अष्टा०६.४.८६) अनेन पाक्षिको यणादेशः। (निरेके) निर्गता रेकाः शङ्का यस्मात्तस्मिन् (पज्रेषु) शिल्पव्यवहारेषु। अत्र पन धातोः बाहुलकाद् औणादिको रक् प्रत्ययो वर्णव्यत्ययेन जकारादेशश्च। (स्तोमः) स्तुतिसमूहः (दुर्यः) गृहसम्बन्धी द्वारस्थः। दुर्या इति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (न) इव (यूपः) स्तम्भः (अश्वयुः) आत्मनोऽश्वानिच्छुः (गव्युः) आत्मनो गाः धेनुपृथिवीन्द्रियकिरणान्निच्छुः (इन्द्रः) विद्याद्यैश्वर्य्यवान् (इत्) एव (रायः) धनानि (क्षयति) प्राप्नुयात्। लेट्प्रयोगोऽयम् (प्रयन्ता) प्रकर्षेण यमनकर्त्ता सन् ॥ १४ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्यस्याश्रयेण बहूनि कार्याणि सिध्यन्ति, तथा विदुषामग्निजलादीनां सकाशाद् रथसिद्ध्या धनप्राप्तिर्जायत इति ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे सूर्यामुळे उत्तम कार्य सिद्ध होते तसे विद्वान, अग्नी व जल इत्यादींच्या साह्याने रथ (यान) तयार करून धनाची प्राप्ती होते. ॥ १४ ॥