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सु॒त॒पाव्ने॑ सु॒ता इ॒मे शुच॑यो यन्ति वी॒तये॑। सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः॥

English Transliteration

sutapāvne sutā ime śucayo yanti vītaye | somāso dadhyāśiraḥ ||

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Pad Path

सु॒त॒ऽपाव्ने॑। सु॒ताः। इ॒मे। शुच॑यः। य॒न्ति॒। वी॒तये॑। सोमा॑सः। दधि॑ऽआशिरः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:5» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

ये संसारी पदार्थ किसलिये उत्पन्न किये गये और कैसे हैं, ये किससे पवित्र किये जाते हैं, इस विषय का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - परमेश्वर ने वा वायु और सूर्य से जिस कारण (सुतपाव्ने) अपने उत्पन्न किये हुए पदार्थों की रक्षा करनेवाले जीव के (वीतये) ज्ञान वा भोग के लिये (दध्याशिरः) जो धारण करनेवाले उत्पन्न होते हैं, तथा (शुचयः) जो पवित्र (सोमासः) जिनसे अच्छे व्यवहार होते हैं, वे सब पदार्थ जिसने (सुताः) उत्पादन करके पवित्र किये हैं, इसी से सब प्राणिलोग इन को प्राप्त होते हैं॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। ईश्वर ने सब जीवों पर कृपा करके उनके कर्मों के अनुसार यथायोग्य फल देने के लिये सब कार्य्यरूप जगत् को रचा और पवित्र किया है, तथा पवित्र करने करानेवाले सूर्य्य और पवन को रचा है, उसी हेतु से सब जड़ पदार्थ वा जीव पवित्र होते हैं। परन्तु जो मनुष्य पवित्र गुणकर्मों के ग्रहण से पुरुषार्थी होकर संसारी पदार्थों से यथावत् उपयोग लेते तथा सब जीवों को उनके उपयोगी कराते हैं, वे ही मनुष्य पवित्र और सुखी होते हैं॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

जगत्स्थाः पदार्थाः किमर्थाः कीदृशाः केन पवित्रीकृताश्च सन्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

इन्द्रेण परमेश्वरेण वायुसूर्य्याभ्यां वा यतः सुतपाव्ने वीतय इमे दध्याशिरः शुचयः सोमासः सर्वे पदार्था उत्पादिताः पवित्रीकृताः सन्ति, तस्मादेतान् सर्वे जीवा यन्ति प्राप्नुवन्ति॥५॥

Word-Meaning: - (सुतपाव्ने) सुतानामाभिमुख्येनोत्पादितानां पदार्थानां पावा रक्षको जीवस्तस्मै। अत्र आतो मनिन्क्वनिब्वनिपश्च इति वनिप्प्रत्ययः। (सुताः) उत्पादिताः (इमे) सर्वे (शुचयः) पवित्राः (यन्ति) यान्ति प्राप्नुवन्ति (वीतये) ज्ञानाय भोगाय वा। वी गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसनखादनेषु अस्मात् मन्त्रे वृषेषपचमनविदभूवीरा उदात्तः अनेन क्तिन्प्रत्यय उदात्तत्वं च। (सोमासः) अभिसूयन्त उत्पद्यन्त उत्तमा व्यवहारा येषु ते। सोम इति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) (दध्याशिरः) दधति पुष्णन्तीति दधयस्ते समन्तात् शीर्यन्ते येषु ते। दधातेः प्रयोगः आदॄगम० (अष्टा०३.२.१७१) अनेन किन् प्रत्ययः। शॄ हिंसार्थः, ततः क्विप्॥५॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। ईश्वरेण सर्वेषां जीवानामुपरि कृपां कृत्वा कर्मानुसारेण फलदानाय सर्वं कार्य्यं जगद्रच्यते पवित्रीयते चैवं पवित्रकारकौ सूर्य्यपवनौ च, तेन हेतुना सर्वे जडाः पदार्था जीवाश्च पवित्राः सन्ति। परन्तु ये मनुष्याः पवित्रगुणकर्मग्रहणे पुरुषार्थिनो भूत्वैतेभ्यो यथावदुपयोगं गृहीत्वा ग्राहयन्ति, त एव पवित्रा भूत्वा सुखिनो भवन्ति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. ईश्वराने सर्व जीवांवर कृपा करून त्यांच्या कर्मानुसार यथायोग्य फळ देण्यासाठी सर्व कार्यजगत निर्माण केलेले आहे व पवित्र केलेले आहे. पवित्र करणारे व करविणारे सूर्य व पवन निर्माण केलेले आहेत. त्यामुळेच सर्व जड पदार्थ व जीव पवित्र होतात; परंतु जी माणसे पवित्र गुणकर्म स्वीकारून पुरुषार्थी बनून जगातील पदार्थांचा यथायोग्य उपयोग करून घेतात व सर्व जीवांना त्यांचा उपयोग करवून देतात, तीच माणसे पवित्र व सुखी होतात. ॥ ५ ॥