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यो नः॑ पूषन्न॒घो वृको॑ दुः॒शेव॑ आ॒दिदे॑शति । अप॑ स्म॒ तं प॒थो ज॑हि ॥

English Transliteration

yo naḥ pūṣann agho vṛko duḥśeva ādideśati | apa sma tam patho jahi ||

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Pad Path

यः । नः॒ । पू॒ष॒न् । अ॒घः । वृकः॑ । दुः॒शेव॑ । आ॒दिदे॑शति । अप॑ । स्म॒ । तम् । प॒थः । ज॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:42» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

जो धर्म्म और राज्य के मार्गों में विघ्न करते हैं, उनका निवारण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया हैं।

Word-Meaning: - हे (पूषन्) सब जगत् को विद्या से पुष्ट करनेवाले विद्वान् ! आप (यः) जो (अघः) पाप करने (दुःशेवः) दुःख में शयन कराने योग्य (वृकः) स्तेन अर्थात् दुःख देने वाला चोर (नः) हम लोगों को (आदिदेशति) उद्देश करके पीड़ा देता हो (तम्) उस दुष्ट स्वभाव वाले को (पथः) राजधर्म और प्रजामार्ग से (अपजहि) नष्ट वा दूर कीजिये ॥२॥
Connotation: - मनुष्यों को उचित है कि शिक्षा विद्या तथा सेना के बल से दूसरे के धन को लेने वाले शठ और चोरों को मारना सर्वथा दूर करना निरन्तर बाँध के राजनीति के मार्गों को भय से रहित संपादन करें जैसे जगदीश्वर दुष्टों को उनके कर्मों के अनुसार दण्ड के द्वारा शिक्षा करता है वैसे हम लोग भी दुष्टों को दण्ड द्वारा शिक्षा देकर श्रेष्ठ स्वभावयुक्त करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(यः) वक्ष्यमाणः (नः) अस्मान् (पूषन्) विद्वन् (अघः) अघं पापं विद्यते यस्मिन् सः (वृकः) स्तेनः। वृकइति स्तेनना०। निघं० ३।२४। (दुःशेवः) दुःखे शाययितुमर्हः (आदिदेशति) अतिसृजेदस्मानतिदेश्य पीडयेत् (अप) निवारणे (स्म) एव (तम्) दुष्टस्वभावम् (पथः) धर्मराजप्रजामार्गाद्दूरे (जहि) हिन्धि गमय वा ॥२॥

Anvay:

ये धर्म्मराजमार्गेषु विघ्नकर्त्तारस्ते निवारणीयाइत्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे पूषन् विद्वँस्त्वं योऽघो दुःशेवो वृकः स्तेनोऽस्मानादिदेशति तं पथोऽपजहि विनाशय वा दूरे निक्षिप ॥२॥
Connotation: - मनुष्यैः शिक्षाविद्यासेनाबलेन परस्वादायिनः शठाश्चोराः सर्वथा हन्तव्या दूरतः प्रक्षेप्याः सततं बन्धनीयाश्चैवं विधाय राजधर्म्मप्रजामार्गा निःशंका निर्भयाः संपादनीयाः। यथा परमेश्वरो दुष्टाँस्तत्कर्म्मानुसारेण शिक्षते तथैवाऽस्माभिरप्येते शिक्षादण्डवेदद्वारा सर्वे साधवः संपादनीया इति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी शिक्षण, विद्या व सेनेच्या बलाने दुसऱ्याच्या धनाचे अपहरण करणाऱ्या चोराचे हनन करून नेहमीसाठी दूर करावे. सतत बंधनात ठेवावे व राजनीतीचा मार्ग भयरहित करावा. जसे जगदीश्वर दुष्टांना दंड देऊन शिकवितो तसे आम्हीही दुष्टांना दंड देऊन शिक्षणाद्वारे श्रेष्ठ स्वभावाचे बनवावे. ॥ २ ॥