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सु॒गः पन्था॑ अनृक्ष॒र आदि॑त्यास ऋ॒तं य॒ते । नात्रा॑वखा॒दो अ॑स्ति वः ॥

English Transliteration

sugaḥ panthā anṛkṣara ādityāsa ṛtaṁ yate | nātrāvakhādo asti vaḥ ||

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Pad Path

सु॒गः । पन्था॑ । अ॒नृ॒क्ष॒रः । आदि॑त्यासः । ऋ॒तम् । य॒ते । न । अत्र॑ । अ॒व॒खा॒दः । अ॒स्ति॒ । वः॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:41» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या सिद्ध करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - जहां (आदित्यासः) अच्छे प्रकार सेवन से अड़तालीस वर्ष युक्त ब्रह्मचर्य से शरीर आत्मा के बल सहित होने से सूर्य्य के समान प्रकाशित हुए अविनाशी धर्म्म को जाननेवाले विद्वान् लोग रक्षा करनेवाले हों वा जहां इन्हों से जिस (अनृक्षरः) कण्टक गड्ढा चोर डाकू अविद्या अधर्माचरण से रहित सरल (सुगः) सुख से जानने योग्य (पन्थाः) जल स्थल अन्तरिक्ष में जाने के लिये वा विद्या धर्म न्याय प्राप्ति के मार्ग का सम्पादन किया हो उस और (ऋतम्) ब्रह्म सत्य वा यज्ञ को (यते) प्राप्त होने के लिये तुम लोगों को (अत्र) इस मार्ग में (अवखादः) भय (नास्ति) कभी नहीं होता ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को भूमि समुद्र अन्तरिक्ष में रथ नौका विमानों के लिये सरल दृढ़ कण्टक चोर डाकू भय आदि दोष रहित मार्गों को संपादन करना चाहिये जहां किसी को कुछ भी दुःख वा भय न होवे इन सब को सिद्ध करके अखण्ड चक्रवर्ती राज्य को भोग करना वा कराना चाहिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(सुगः) सुखेन गच्छन्ति यस्मिन् सः (पंथाः) जलस्थलान्तरिक्षगमनार्थः शिक्षाविद्याधर्मन्यायप्राप्त्यर्थश्चमार्गः (अनृक्षरः) कंटकगर्त्तादिदोषरहितः सेतुमार्जनादिभिः सह वर्त्तमानः सरलः। चोरदस्युकुशिक्षाऽविद्याऽधर्माऽऽचरणरहितः (आदित्यासः) सुसेवितेनाष्टचत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्येण शरीरात्मबलसाहित्येनाऽऽदित्यवत्प्रकाशिता अविनाशिधर्मविज्ञाना विद्वांसः। आदित्या इति पदना०। निघं० ५।६। अनेन ज्ञानवत्त्वं सुखप्रापकत्त्वं च गृह्यते। (ऋतम्) ब्रह्म सत्यं यज्ञं वा (यते) प्रयतमानाय (न) निषेधार्थे (अत्र) विद्वत्प्रचारिते रक्षिते व्यवहारे (अवखादः) विखादो भयम् (अस्ति) भवति (वः) युष्माकम् ॥४॥

Anvay:

पुनस्ते किं साधयेयुरित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - यत्रादित्यासो रक्षका भवन्ति यत्र चैतैरनृक्षरः सुगः पन्थाः सम्पादितस्तदर्थमृतं यते च वोऽत्रावखादो नास्ति ॥४॥
Connotation: - मनुष्यैर्भूमिसमुद्रान्तरिक्षेषु रथनौकाविमानानां गमनाय सरला दृढाः कंटकचोरदस्युभयादिदोषरहिताः पंथानो निष्पाद्या यत्र खलु कस्याऽपि किंचिद्दुःखभये न स्याताम्। एतत्सर्वं संसाध्याखण्डचक्रवर्त्तिराज्यं भोग्यं भोजयितव्यमिति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी भूमी, समुद्र, अंतरिक्षात रथ, नौका, विमानातून जाण्यासाठी कंटक, चोर, डाकूंचे भय इत्यादी दोषांनी रहित सरळ दृढ मार्ग संपादन केला पाहिजे. जेथे कुणालाही कोणतेही दुःख किंवा भय होता कामा नये. हे सर्व सिद्ध करून अखंड चक्रवर्ती राज्याचा भोग केला, करविला गेला पाहिजे. ॥ ४ ॥