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यं बा॒हुते॑व॒ पिप्र॑ति॒ पान्ति॒ मर्त्यं॑ रि॒षः । अरि॑ष्टः॒ सर्व॑ एधते ॥

English Transliteration

yam bāhuteva piprati pānti martyaṁ riṣaḥ | ariṣṭaḥ sarva edhate ||

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Pad Path

यम् । बा॒हुता॑इव । पिप्र॑ति । पान्ति॑ । मर्त्य॑म् । रि॒षः । अरि॑ष्टः । सर्वः॑ । ए॒ध॒ते॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:41» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वह रक्षा किया हुआ किसको प्राप्त होता है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - जो वरुण आदि धार्मिक विद्वान् लोग (बाहुतेव) जैसे शूरवीर बाहुबलों से चोर आदि को निवारण कर दुःखों को दूर करते हैं वैसे (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य को (पिप्रति) सुखों से पूर्ण करते और (रिषः) हिंसा करनेवाले शत्रु से (पांति) बचाते हैं (सः) वे (सर्वः) समस्त मनुष्यमात्र (अरिष्टः) सब विघ्नों से रहित होकर वेद विद्या आदि उत्तम गुणों से नित्य (एधते) वृद्धि को प्राप्त होते हैं ॥२॥
Connotation: - इस मंत्र में उपमालंकार है। जैसे सभा और सेनाध्यक्ष के सहित राजपुरुष बाहुबल वा उपाय के द्वारा शत्रु डांकू चोर आदि और दरिद्रपन को निवारण कर मनुष्यों की अच्छे प्रकार रक्षा पूर्ण सुखों को संपादन सब विघ्नों को दूर पुरुषार्थ में संयुक्त कर ब्रह्मचर्य सेवन वा विषयों की लिप्सा छोड़ने में शरीर की वृद्धि और विद्या वा उत्तम शिक्षा से आत्मा की उन्नति करते हैं वैसे ही प्रजा जन भी किया करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(यम्) जनम् (बाहुतेव) यथा बाधते दुःखानि याभ्यां भुजाभ्यां बलवीर्याभ्यां वा तयोर्भावस्तथा (पिप्रति) पिपुरति (पान्ति) रक्षन्ति (मर्त्यम्) मनुष्यम् (रिषः) हिंसकाच्छत्रोः (अरिष्टः) सर्वविघ्नरहितः (सर्वः) समस्तो जनः (एधते) सुखैश्वर्ययुक्तैर्गुणैर्वर्धते ॥२॥

Anvay:

स संरक्षितस्सन् किं प्राप्नोतीत्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - एते वरुणादयो यं मर्त्यं बाहुतेव पिप्रति रिषः शत्रोः सकाशात् पान्ति स सर्वो जनोऽरिष्टोनिर्विघ्नः सन् देवविद्यादिसद्गुणैर्नित्यमेधते ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सभासेनाध्यक्षा राजपुरुषा बाहुबलप्रयत्नाभ्यां शत्रुदस्युचोरान्दारिद्य्रञ्च निवार्य जनान् सम्यग्रक्षित्वा पूर्णानि सुखानि संपाद्य सर्वविघ्नान्निवार्य्य सर्वान्मनुष्यान् पुरुषार्थे संयोज्य ब्रह्मचर्यसेवनेन विषयलोलुपतात्यागेन विद्यासुशिक्षाभ्यां शरीरात्मोन्नतिं कुर्वन्ति तथैव प्रजास्थैरप्यनुष्ठेयम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे सभा व सेनाध्यक्षासह राजपुरुष बाहुबलाने प्रयत्नपूर्वक शत्रू, डाकू, चोर इत्यादींचे व दारिद्र्याचे निवारण करून माणसांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करतात व पूर्ण सुख प्राप्त करतात. सर्व विघ्ने दूर करून पुरुषार्थ करून ब्रह्मचर्याचे सेवन करून विषयलालसा सोडून विद्या व सुशिक्षणाने शरीर व आत्म्याची उन्नती करतात, तसेच प्रजाजनांनीही करावे. ॥ २ ॥