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उत्ति॑ष्ठ ब्रह्मणस्पते देव॒यन्त॑स्त्वेमहे । उप॒ प्र य॑न्तु म॒रुतः॑ सु॒दान॑व॒ इन्द्र॑ प्रा॒शूर्भ॑वा॒ सचा॑ ॥

English Transliteration

ut tiṣṭha brahmaṇas pate devayantas tvemahe | upa pra yantu marutaḥ sudānava indra prāśūr bhavā sacā ||

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Pad Path

उत् । ति॒ष्ठ॒ । ब्र॒ह्म॒णः॒ । प॒ते॒ । दे॒व॒यन्तः॑ । त्वा॒ । ई॒म॒हे॒ । उप॑ । प्र । य॒न्तु॒ । म॒रुतः॑ । सु॒दान॑वः । इन्द्र॑ । प्रा॒सूः । भ॒व॒ । सचा॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:40» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को उचित है, कि वेदविद जनों को कैसे उपदेश करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है। फिर मनुष्य वेद के विद्वान् से उपदेश करने के लिए कैसे प्रार्थना करें। सं०

Word-Meaning: - हे (ब्रह्मणस्पते) वेद की रक्षा करनेवाले (इन्द्र) अखिल विद्यादि परमैश्वर्ययुक्त विद्वन् ! जैसे (सचा) विज्ञान से (देवयन्तः) सत्य विद्याओं की कामना करने (सुदानवः) उत्तम दान स्वभाववाले (मरुतः) विद्याओं के सिद्धान्तों के प्रचार के अभिलाषी हम लोग (त्वा) आपको (ईमहे) प्राप्त होते और जैसे सब धार्मिक जन (उपप्रयन्तु) समीप आवें वैसे आप (प्राशूः) सब सुखों के प्राप्त करानेवाले (भव) हूजिये और सबके हितार्थ प्रयत्न कीजिये ॥१॥
Connotation: - इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्य अति पुरुषार्थ से विद्वानों का संग उनकी सेवा विद्या योग धर्म और सबके उपकार करना आदि उपायों से समग्र विद्याओं के अध्येता परमात्मा के विज्ञान और प्राप्ति से सब मनुष्यों को प्राप्त हों और इसीसे अन्य सबको सुखी करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(उत्) उत्कृष्टार्थे (तिष्ठ) (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) स्वामिन् (देवयन्तः) सत्यविद्याः कामयमानाः (त्वा) त्वाम् (ईमहे) जानीम (उप) समीप्ये (प्र) प्रतीतार्थे (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (मरुतः) आर्त्विजीना विद्वांसः (सुदानवः) शोभनं दानुर्दानं येषां ते (इन्द्र) विद्यादिपरमैश्वर्यप्रद (प्राशूः) यः प्राश्नुते प्रकृष्टतया व्याप्नोति सः (भव) अत्र द्वचोतस्तिङ इति दीर्घः। (सचा) समवेतेन विज्ञानेन ॥१॥

Anvay:

#पुनर्मनुष्यैर्वेदविदङ्कथमुपदिशेदित्युपदिश्यते। #[पुनर्मनुष्या वेदविदमुपदेशाय कथं प्रार्थयेयुरित्युपदिश्यते। सं०]

Word-Meaning: - हे ब्रह्मणस्पत इन्द्र ! यथा सचा सह देवयन्तः सुदानवो मरुतो वयं त्वेमहे यथा च सर्वे जना उपप्रयन्तु तथा त्वं प्राशूः सर्वसुखप्रापको भव सर्वस्य हितायोत्तिष्ठ ॥१॥
Connotation: - मनुष्या यत्नतो विद्वत्सङ्गसेवाविद्यायोगधर्मसर्वोपकाराद्युपायैः सर्वविद्याधीशस्य परमेश्वरस्य विज्ञानेन प्राप्तानि सर्वाणि सुखानि प्राप्तव्यानि प्रापयितव्यानि च ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

एकोणचाळिसाव्या सूक्तात सांगितलेल्या विद्वानांच्या कार्यरूप अर्थाबरोबर ब्रह्मणस्पती इत्यादी शब्दांच्या अर्थाच्या संबंधाने पूर्वसूक्ताची संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी अत्यंत पुरुषार्थाने विद्वानांची संगती, त्यांची सेवा, विद्या, योगधर्म, सर्वांवर उपकार इत्यादी उपायांनी संपूर्ण विद्याधीश परमेश्वराची विज्ञानाने प्राप्ती करावी व सर्व माणसांना प्राप्ती करवून सुखी करावे. ॥ १ ॥