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परे॑हि॒ विग्र॒मस्तृ॑त॒मिन्द्रं॑ पृच्छा विप॒श्चित॑म्। यस्ते॒ सखि॑भ्य॒ आ वर॑म्॥

English Transliteration

parehi vigram astṛtam indram pṛcchā vipaścitam | yas te sakhibhya ā varam ||

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Pad Path

परा॑। इ॒हि॒। विग्र॑म्। अस्तृ॑तम्। इन्द्र॑म्। पृ॒च्छ॒। वि॒पः॒ऽचित॑म्। यः। ते॒। सखि॑ऽभ्यः। आ। वर॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:4» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य लोग विद्वानों के समीप जाकर क्या करें और वे इनके साथ कैसे वर्तें, इस विषय का उपदेश ईश्वर ने अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हे विद्या की अपेक्षा करनेवाले मनुष्य लोगो ! (यः) जो विद्वान् तुझ और (ते) तेरे (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (आवरम्) श्रेष्ठ विज्ञान को देता हो, उस (विग्रम्) जो श्रेष्ठ बुद्धिमान् (अस्तृतम्) हिंसा आदि अधर्मरहित (इन्द्रम्) विद्या परमैश्वर्य्ययुक्त (विपश्चितम्) यथार्थ सत्य कहनेवाले मनुष्य के समीप जाकर उस विद्वान् से (पृच्छ) अपने सन्देह पूछ, और फिर उनके कहे हुए यथार्थ उत्तरों को ग्रहण करके औरों के लिये तू भी उपदेश कर, परन्तु जो मनुष्य अविद्वान् अर्थात् मूर्ख ईर्ष्या करने वा कपट और स्वार्थ में संयुक्त हो, उससे तू (परेहि) सदा दूर रह॥४॥
Connotation: - सब मनुष्यों को यही योग्य है कि प्रथम सत्य का उपदेश करनेहारे वेद पढ़े हुए और परमेश्वर की उपासना करनेवाले विद्वानों को प्राप्त होकर अच्छी प्रकार उनके साथ प्रश्नोत्तर की रीति से अपनी सब शङ्का निवृत्त करें, किन्तु विद्याहीन मूर्ख मनुष्य का सङ्ग वा उनके दिये हुए उत्तरों में विश्वास कभी न करें॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्समीपे स्थित्वा मनुष्येण किं कर्त्तव्यम्, ते च तान् प्रति किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे विद्यां चिकीर्षो मनुष्य ! यो विद्वान् तुभ्यं सखिभ्यो मित्रशीलेभ्यश्चासमन्ताद्वरं विज्ञानं ददाति, तं विग्रमस्तृतमिन्द्रं विपश्चितमुपगम्य सन्देहान् पृच्छ। यथार्थतया तदुपदिष्टान्युत्तराणि गृहीत्वाऽन्येभ्यस्त्वमपि वद। यो ह्यविद्वान् ईर्ष्यकः कपटी स्वार्थी मनुष्योऽस्ति तस्मात्सर्वदा परेहि॥४॥

Word-Meaning: - (परा) पृथक् (इहि) भव (विग्रम्) मेधाविनम्। वेर्ग्रो वक्तव्य इति वेः परस्या नासिकायाः स्थाने ग्रः समासान्तादेशः। उपसर्गाच्च। (अष्टा०५.४.११९) इति सूत्रस्योपरि वार्तिकम्। विग्र इति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (अस्तृतम्) अहिंसकम् (इन्द्रम्) विद्यया परमैश्वर्ययुक्तं मनुष्यम् (पृच्छ) सन्देहान् दृष्ट्वोत्तराणि गृहाण। द्व्यचोऽतस्तिङः। (अष्टा०६.३.१३५) इति दीर्घः। (विपश्चितम्) विद्वांसं य आप्तः सन्नुपदिशति। विपश्चिदिति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) पुनरुक्त्याऽऽप्तत्वादिगुणवत्त्वं गृह्यते। (ते) तुभ्यम् (सखिभ्यः) मित्रस्वभावेभ्यः (आ) समन्तात् (वरम्) परमोत्तमं विज्ञानधनम्॥४॥
Connotation: - सर्वेषां मनुष्याणामियं योग्यतास्ति-पूर्वं परोपकारिणं पण्डितं ब्रह्मनिष्ठं श्रोत्रियं पुरुषं विज्ञाय तेनैव सह प्रश्नोत्तरविधानेन सर्वाः शङ्का निवारणीयाः, किन्तु ये विद्याहीनाः सन्ति, नैव केनापि तत्सङ्गकथनोत्तरविश्वासः कर्त्तव्य इति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व माणसांनी प्रथम सत्याचा उपदेश करणाऱ्या वेदाध्ययन केलेल्या व परमेश्वराची उपासना करणाऱ्या विद्वानांना भेटून चांगल्या प्रकारे त्यांच्याबरोबर प्रश्नोत्तर पद्धतीने आपल्या सर्व शंकांचे निरसन करावे; परंतु विद्याहीन मूर्ख माणसांवर किंवा त्यांनी दिलेल्या उत्तरांवर कधीही विश्वास ठेवू नये. ॥ ४ ॥