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प्र वे॑पयन्ति॒ पर्व॑ता॒न्वि वि॑ञ्चन्ति॒ वन॒स्पती॑न् । प्रो आ॑रत मरुतो दु॒र्मदा॑इव॒ देवा॑सः॒ सर्व॑या वि॒शा ॥

English Transliteration

pra vepayanti parvatān vi viñcanti vanaspatīn | pro ārata maruto durmadā iva devāsaḥ sarvayā viśā ||

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Pad Path

प्र । वे॒प॒य॒न्ति॒ । पर्व॑तान् । वि । वि॒ञ्च॒न्ति॒ । वन॒स्पती॑न् । प्रो इति॑ । आ॒र॒त॒ । म॒रु॒तः॒ । दु॒र्मदाः॑इव । देवा॑सः । सर्व॑या । वि॒शा॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:39» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे कर्म्म करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) वायुवत् बलिष्ठ और प्रिय (देवासः) न्यायाधीश सेनापति सभाध्यक्ष विद्वान् लोगो ! तुम जैसे वायु (वनस्पतीन्) वड़ और पिप्पल आदि वनस्पतियों को (प्रवेपयन्ति) कंपाते और जैसे (पर्वतान्) मेघों को (विविचंति) पृथक-२ कर देते हैं वैसे (दुर्मदा इव) मदोन्मत्तों के समान वर्त्तते हुए शत्रुओं को युद्ध से (प्रो आरत) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये और (सर्वया) सब (विशा) प्रजा के साथ सुख से वर्त्तिये ॥५॥
Connotation: - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। जैसे राजधर्म में वर्त्तनेवाले विद्वान् लोग दंड से घमंडी डाकुओं को वश में करके धर्मात्मा प्रजाओं का पालन करते हैं वैसे तुम भी अपनी प्रजा का पालन करो और जैसे पवन भूगोल के चारों ओर विचरते हैं वैसे आप लोग सर्वत्र जाओ-आओ। यह अठारवां वर्ग समाप्त हुआ ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(प्र) प्रकृष्टार्थे (वेपयन्ति) चालयन्ति (पर्वतान्) मेघान् (वि) विवेकार्थे (विञ्चन्ति) विभंजन्ति (वनस्पतीन्) वटाश्वत्थादीन् (प्रो) प्रवेशार्थे (आरत) प्राप्नुत। अत्र लोडर्थे लङ् (मरुतः) वायुवद्बलवन्तः (दुर्मदा इव) यथा दुष्टमदा जनाः (देवासः) न्यायधीशाः सेनापतयः सभासदो विद्वांसः। अत्राज्जसेरसुग् इत्यसुक्। (सर्वया) अखिलया (विशा) प्रजया सह ॥५॥

Anvay:

पुनस्ते कीदृशानि कर्माणि कुर्य्युरित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे मरुतो देवासो यूयं यथा वायवो वनस्पतीन् प्रवेपयन्ति पर्वतान्विञ्चन्ति तथा दुर्मदा इव वर्त्तमानानरीन् युद्धेन प्रो आतर सर्वया प्रजया सह सुखेन वर्त्तध्वम् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा राजधर्मनिष्ठा विद्वांसो दण्डेनोन्मत्तान्दस्यून् वशं नीत्वा धार्मिकीः प्रजाः पालयन्ति तथा यूयमप्येताः पालयत यथा वायवो भूगोलस्याऽभितो विचरन्ति तथा भवन्तोपि विचरन्तु ॥५॥ अष्टादशो वर्गः समाप्तः ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे राजधर्मनिष्ठ विद्वान लोक उन्मत्तांना दंड देऊन ताब्यात ठेवतात व धार्मिक प्रजेचे पालन करतात तसे तुम्ही आपल्या प्रजेचे पालन करा व जसे वायू भूगोलाच्या सर्व बाजूंनी वाहतात तसे तुम्ही सर्वत्र गमनागमन करा. ॥ ५ ॥