Go To Mantra

मो षु णः॒ परा॑परा॒ निर्ऋ॑तिर्दु॒र्हणा॑ वधीत् । प॒दी॒ष्ट तृष्ण॑या स॒ह ॥

English Transliteration

mo ṣu ṇaḥ parā-parā nirṛtir durhaṇā vadhīt | padīṣṭa tṛṣṇayā saha ||

Mantra Audio
Pad Path

मो इति॑ । सु । नः॒ । परा॑परा । निःऋ॑तिः । दुः॒हना॑ । व॒धी॒त् । प॒दी॒ष्ट । तृष्ण॑या । स॒ह॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:38» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी पूर्वोक्त विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे अध्यापक लोगो ! आप जैसे (पराऽपरा) उत्तम मध्यम और निकृष्ट (दुर्हणा) दुःख से हटने योग्य (निर्ऋतिः) पवनों की रोग करने वा दुःख देनेवाली गति (तृष्णया) प्यास वा लोभ गति के (सह) साथ (नः) हम लोगों को (मोपदिष्ट) कभी न प्राप्त हो और (मावधीत्) बीच में न मरें +किन्तु जो इन पवनों की सुख देनेवाली गति है वह हम लोगों को नित्य प्राप्त होवे वैसा प्रयत्न किया कीजिये ॥६॥ +सं० भा० के अनुसार। मारे। सं०
Connotation: - पवनों की दो प्रकार की गति होती है एक सुख कारक और दूसरी दुःख करनेवाली उनमें से जो उत्तम नियमों से सेवन की हुई रोगों का हनन करती हुई शरीर आदि के सुख का हेतु है वह प्रथम और जो खोटे नियम और प्रमाद से उत्पन्न हुई क्लेश दुःख और रोगों की देनेवाली वह दूसरी इन्हों के मध्य में से मनुष्यों को अति उचित है कि परमेश्वर के अनुग्रह और अपने पुरुषार्थों से पहिली गति को उत्पन्न करके दूसरी गति का नाश करके सुख की उन्नति करनी चाहिये और जो पिपासा आदि धर्म हैं वह वायु के निमित्त से तथा जो लोभ का वेग है वह अज्ञान से ही उत्पन्न होता है ॥६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

(मो) निषेधार्थे (सु) सर्वथा (नः) अस्मान् (पराऽपरा) या परोत्कृष्टा चासावपराऽनुत्कृष्टा च सा (निर्ऋतिः) वायूनां रोगकारिका दुःखप्रदा गतिः। निर्ऋतिर्निरमणादृच्छतेः कृच्छ्रापत्तिरितरा सा पृथिव्यां संदिह्यते तयोविभागः। निरु० २।७। (दुर्हणा) दुःखेन हन्तुं योग्या (वधीत्) नाशयतु। अत्र लोडर्थे लुङन्तर्गताण्यर्थश्च। (पदीष्ट) पत्सीष्ट प्राप्नुयात्। अत्र छन्दस्युभयथा इति सार्वधातुकाश्रयणात्सलोपः। (तृष्णया) तृष्यत यया पिपासया लोभगत्या वा तया (सह) संहिता ॥६॥

Anvay:

पुनस्तद्विषयमाह।

Word-Meaning: - हे अध्यापका यूयं यथा पराऽपरा दुर्हणा निर्ऋतिर्मरुतां प्रतिकूला गतिस्तृष्णया सह नोऽस्मान्मोपदिष्ट मोपवधीच्च किं त्वेतेषां या सुष्ठु सुखप्रदा गतिः सास्मान्नित्यं प्राप्ता भवेदेवं प्रयतध्वम् ॥६॥
Connotation: - मरुतां द्विविधा गतिरेका सुखकारिणी द्वितीया दुःखकारिणी च, तत्र या सुनियमैः सेविता रोगान् हन्त्री सती शरीरादिसुखहेतुर्भवति साऽऽद्या। या च कुनियमैः प्रमादेनोत्पादिता कृच्छ्रदुःखरोगप्रदा साऽपरा। एतयोर्मध्यान्मनुष्यैः परमैश्वराऽनुग्रहेण विद्वत्संगेन स्वपुरुषार्थैश्चप्रथमामुत्पाद्य द्वितीयां निहत्य सुखमुन्नेयम्। यः पिपासादिधर्मः स वायुनिमित्तेनैव यश्च लोभवेगः सोऽज्ञानेनैव जायत इति वेद्यम् ॥६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - वायूची गती दोन प्रकारची असते. एक सुखकारक व दुसरी दुःखकारक. त्यातून जी उत्तम नियमांनी स्वीकारलेली, रोगांचे हनन करणारी, शरीर इत्यादीचा हेतू असते ती प्रथम व जी खोटी असत्य नियमांनी, प्रमादाने उत्पन्न झालेले क्लेश, दुःख व रोग निर्माण करणारी ती दुसरी. यांच्यापैकी माणसांनी परमेश्वराचा अनुग्रह व आपल्या पुुरुषार्थाने पहिल्या गतीला उत्पन्न करून दुसऱ्या गतीचा नाश करावा व सुखाची वाढ करावी. जे पिपासा इत्यादी धर्म आहेत ते वायूच्या निमित्ताने व जो लोभाचा वेग आहे तो अज्ञानाने उत्पन्न होतो. ॥ ६ ॥