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वन्द॑स्व॒ मारु॑तं ग॒णं त्वे॒षं प॑न॒स्युम॒र्किण॑म् । अ॒स्मे वृ॒द्धा अ॑सन्नि॒ह ॥

English Transliteration

vandasva mārutaṁ gaṇaṁ tveṣam panasyum arkiṇam | asme vṛddhā asann iha ||

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Pad Path

वन्द॑स्व । मारु॑तम् । ग॒णम् । त्वे॒षम् । प॒न॒स्युम् । अ॒र्किण॑म् । अ॒स्मे इति॑ । वृ॒द्धाः । अ॒स॒न् । इ॒ह॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:38» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् क्या करे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् मनुष्य ! तू जैसे (इह) इस सब व्यवहार में (अस्मे) हम लोगों के मध्य में (वृद्धाः) बड़ी विद्या और आयु से युक्त वृद्ध पुरुष सत्याचरण करनेवाले (असन्) होवें वैसे (अर्किणम्) प्रशंसनीय (त्वेषम्) अग्नि आदि प्रकाशवान् द्रव्यों से युक्त (पनस्युम्) अपने आत्मा के व्यवहार की इच्छा के हेतु (मारुतम्) वायु के इस (गणम्) समूह की (वन्दस्व) कामना कर ॥१५॥
Connotation: - इस मंत्र में लुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसे पवन कार्यों को सिद्ध करने के साधन होने से सुख देनेवाले होते हैं वैसे विद्या और अपने पुरुषार्थ से सुख किया करें ॥१५॥ इस सूक्त में वायु के दृष्टान्त से विद्वानों के गुण वर्णन करने से पूर्व सूक्त के साथ इस सूक्त की संगति जाननी चाहिये यह सत्रहवां वर्ग और अड़तीसवां सूक्त समाप्त हुआ ॥३८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(वन्दस्व) कामय (मारुतम्) मरुतमिमम् (गणम्) समूहम् (त्वेषम्) अग्न्यादिप्रकाशवद्द्रव्ययुक्तम् (पनस्युम्) पनायति व्यवहरति येन तदात्मन इच्छुम् #क्याच्छन्दासि इत्युः प्रत्ययः। (अर्किणम्) प्रशस्तोऽर्कोऽर्चनं विद्यते यस्मिंस्तम्। अत्र प्रशंसार्थ इनिः। (अस्मे) अस्माकम्। अत्र सुपांसुलुक् इत्यामः स्थाने शे। (वृद्धाः) दीर्घविद्यायुक्ताः (असन्) भवेयुः। लेट्प्रयोगः। (इह) अस्मिन् सर्वव्यवहारे ॥१५॥ #[अ० ३।२।१७०। सं०।]

Anvay:

पुनः स किं कुर्यादित्युपदिश्यते।

Word-Meaning: - हे विद्वंस्त्वं यथेहास्मे वृद्धा असम् तथाऽर्किणम् त्वेषं पनस्युं मारुतं गणं वन्दस्व ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा वायवः कार्याणि साधकत्वेन सुखप्रदा भवेयुस्तथा विद्यापुरुषार्थाभ्यां प्रयतितव्यम् ॥१५॥ अथास्मिन् वायु दृष्टान्तेन विद्वद्गुणवर्णितेनातीतेन सूक्तेन सहास्य संगतिरस्तीति बोध्यम्। इति सप्तदशो वर्गोऽष्टात्रिशं सूक्तं च समाप्तम् ॥३८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू कार्य सिद्ध करण्याचे साधन असल्यामुळे सुख देणारे असतात तसे माणसांनी विद्या व आपल्या पुरुषार्थाने सुख मिळवावे. ॥ १५ ॥