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प्र त्वा॑ दू॒तं वृ॑णीमहे॒ होता॑रं वि॒श्ववे॑दसम् । म॒हस्ते॑ स॒तो वि च॑रन्त्य॒र्चयो॑ दि॒वि स्पृ॑शन्ति भा॒नवः॑ ॥

English Transliteration

pra tvā dūtaṁ vṛṇīmahe hotāraṁ viśvavedasam | mahas te sato vi caranty arcayo divi spṛśanti bhānavaḥ ||

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Pad Path

प्र । त्वा॒ । दू॒तम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ । होता॑रम् । वि॒श्ववे॑दसम् । म॒हः । ते॒ । स॒तः । वि । च॒र॒न्ति॒ । अ॒र्चयः॑ । दि॒वि । स्पृ॒श॒न्ति॒ । भा॒नवः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:36» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:3» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:8» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में भौतिक अग्नि के दृष्टान्त से राजदूत के गुणों का उपदेश किया है।

Word-Meaning: - हे विद्वन् राजदूत ! जैसे हम लोग (विश्ववेदसम्) सब शिल्पविद्या का हेतु (होतारम्) ग्रहण करने और (दूतम्) सब पदार्थों को तपानेवाले अग्नि को (वृणीमहे) स्वीकार करते हैं वैसे (त्वा) तुझको भी ग्रहण करते हैं तथा जैसे (महः) महागुणविशिष्ट (सतः) सत्कारणरूप से नित्य अग्नि के (भानवः) किरण सब पदार्थों से (स्पृशन्ति) संबन्ध करते और (अर्चयः) प्रकाशरूप ज्वाला (दिवि) द्योतनात्मक सूर्य्य के प्रकाश में (विचरन्ति) विशेष करके प्राप्त होती है वैसे तेरे भी सब काम होने चाहिये ॥३॥
Connotation: - इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे अपने काम में प्रवीण राजदूत जैसे सब मनुष्य महाप्रकाशादिगुणयुक्त अग्नि को पदार्थों की प्राप्ति वा अप्राप्ति के कारण दूत के समान जान और शिल्पकार्यों को सिद्ध करके सुखों को स्वीकार करते और जैसे इस बिजुली रूप अग्नि की दीप्ति सब जगह वर्त्तती हैं और प्रसिद्ध अग्नि की दीप्ति छोटी होने तथा वायु के छेदक होने से अवकाश करनेवाली होकर ज्वाला ऊपर जाती है वैसे तूं भी अपने कामों में प्रवृत्त हो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(प्र) प्रकृष्टार्थे (त्वा) त्वाम् (दूतम्) यो दुनोत्युपतापयति सर्वान् पदार्थानितस्ततो भ्रमणेन दुष्टान् वा तम् (वृणीमहे) स्वीकुर्महे (होतारम्) ग्रहीतारम् (विश्ववेदसम्) विश्वानि सर्वाणि शिल्पसाधनानि विन्दन्ति यस्मात्तं सर्वप्रजासमाचारज्ञं वा (महः) महसो महागुणविशिष्टस्य। सर्वधातुभ्योसुन्नित्यसुन्। सुपां सुलुग् इति ङसो लुक्। (ते) तव (सतः) कारणरूपेणाविनाशिनो विद्यमानस्य (वि) विशेषार्थे (चरन्ति) गच्छन्ति (अर्चयः) दीप्तिरूपा ज्वाला न्यायप्रकाशका नीतयो वा (दिवि) द्योतनात्मके सूर्यप्रकाशे प्रजाव्यवहारे वा (स्पृशन्ति) संबध्नन्ति (भानवः) किरणाः प्रभावा वा। भानव इति रश्मिना०। निघं० १।५। ॥३॥

Anvay:

अथ भौतिकाग्निदृष्टान्तेन राजदूतगुणा उपदिश्यन्ते।

Word-Meaning: - हे विद्वन् राजदूत यथा वयं विश्ववेदसं होतारं दूतमग्निं प्रवृणीमहे तथाभूतं त्वा त्वामपि प्रवृणीमहे यथा च महो महसः सतोऽग्नेर्भानवः सर्वान् पदार्थान् स्पृशन्ति संबध्नन्त्यर्चयो दिवि विचरन्ति च तथा ते तवापि सन्तु ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे स्वकर्मप्रवीण राजदूत यथा सर्वैर्मनुष्यैर्महाप्रकाशादिगुणयुक्तमग्निं पदार्थप्राप्त्यप्राप्त्योः कारकत्वाद्दूतं कृत्वा शिल्पकार्याणि वियदि हुतद्रव्यप्रापणं च साधयित्वा सुखानि स्वीक्रियन्ते यथाऽस्य विद्युद्रूपास्याग्नेर्दीप्तयः सर्वत्र वर्त्तन्ते प्रसिद्धस्य लघुत्वाद्वायोश्छेदकत्वेनावकाशकारित्वाज्ज्वाला उपरि गच्छन्ति तथा त्वमपीदं कृत्वैवं भव ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे आपल्या कामात निपुण असलेल्या राजदूता! जशी सर्व माणसे महाप्रकाश इत्यादी गुणांनी युक्त अग्नीला पदार्थाची प्राप्ती-अप्राप्तीचे कारण दूताप्रमाणे जाणून शिल्पकार्य सिद्ध करून सुख प्राप्त करतात व जशी विद्युतरूपी अग्नीची दीप्ती इतस्ततः पसरलेली असते. प्रत्यक्ष अग्नीची दीप्ती लहान असूनही वायूच्या छेदकत्वामुळे अवकाशात ज्वालारूपाने वर जाते. तसे तूही आपल्या कामात प्रवृत्त हो. ॥ ३ ॥