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इन्द्र॑स्य॒ नु वी॒र्या॑णि॒ प्र वो॑चं॒ यानि॑ च॒कार॑ प्रथ॒मानि॑ व॒ज्री । अह॒न्नहि॒मन्व॒पस्त॑तर्द॒ प्र व॒क्षणा॑ अभिन॒त्पर्व॑तानाम् ॥

English Transliteration

indrasya nu vīryāṇi pra vocaṁ yāni cakāra prathamāni vajrī | ahann ahim anv apas tatarda pra vakṣaṇā abhinat parvatānām ||

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Pad Path

इन्द्र॑स्य । नु । वी॒र्या॑णि । प्र । वो॒च॒म् । यानि॑ । च॒कार॑ । प्र॒थ॒मानि॑ । व॒ज्री । अह॑न् । अहि॑म् । अनु॑ । अ॒पः । त॒त॒र्द॒ । प्र । व॒क्षणा॑आः॑ । अ॒भि॒न॒त् । पर्व॑तानाम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:32» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:36» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:7» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में इन्द्र शब्द से सूर्यलोक की उपमा करके राजा के गुणों का प्रकाश किया है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् मनुष्यो ! तुम लोग जैसे (इन्द्रस्य) सूर्य्य के (यानि) जिन (प्रथमानि) प्रसिद्ध (वीर्य्याणि) पराक्रमों को कहो उनको मैं भी। (नु) (प्रवोचम्) शीघ्र कहूँ जैसे वह (वज्री) सब पदार्थों के छेदन करनेवाले किरणों से युक्त सूर्य्य (अहिम्) मेघ को (अहन्) हनन करके वर्षाता उस मेघ के अवयव रूप (अपः) जलों को नीचे ऊपर (चकार) करता उसको (ततर्द) पृथिवी पर गिराता और (पर्वतानाम्) उन मेघों के सकाश से (प्रवक्षणाः) नदियों को छिन्न-भिन्न करके वहाता है। वैसे मैं शत्रुओं को मारूँ उनको इधर-उधर फेंकूँ और उनको तथा किला आदि स्थानों से युद्ध करने के लिये आई सेनाओं को छिन्न-भिन्न करूँ ॥१॥
Connotation: - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। ईश्वर का उत्पन्न किया हुआ यह अग्निमय सूर्यलोक जैसे अपने स्वाभाविक गुणों से युक्त अनादि प्रकाश आकर्षण दाह छेदन और वर्षा की उत्पत्ति के निमित्त कामों को दिन-रात करता है वैसे जो प्रजा के पालन में तत्पर राजपुरुष हैं उनको भी नित्य करना चाहिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

(इन्द्रस्य) सर्वपदार्थविदारकस्य सूर्य्यलोकस्येव सभापते राज्ञः (नु) क्षिप्रम् (वीर्य्याणि) आकर्षणप्रकाशयुक्तादिवत् कर्माणि (प्र) प्रकृष्टार्थे (वोचम्) उपदिशेयम्। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च। (यानि) (चकार) कृतवान् करोति करिष्यति वा। अत्र सामान्यकाले लिट्। (प्रथमानि) प्रख्यातानि (वज्री) सर्वपदार्थविच्छेदक किरणवानिव शत्रूच्छेदी (अहन्) हन्ति। अत्र लडर्थे लङ्। (अहिम्) मेघम्। अहिरिति मेघनामसु पठितम। निघं० १।१०। (अनु) पश्चादर्थे (अपः) जलानि (ततर्द) तर्दति हिनस्ति। अत्र लडर्थे लिट्। (प्रवक्षणाः) वहन्ति जलानि यास्ता नद्यः (अभिनत्) विदारयति। अत्र लडर्थे लङन्तर्गतो ण्यर्थश्च। (पर्वतानाम्) मेघानां गिरीणां वा पर्वत इति मेघनामसु पठितम्। निघं० १।१०। ॥१॥

Anvay:

तत्रादाविन्द्रशब्देन सूर्यलोकदृष्टान्तेन राजगुणा उपदिश्यन्ते।

Word-Meaning: - हे विद्वांसो मनुष्या यूयं यथा यस्येन्द्रस्य सूर्य्यस्य यानि प्रथमानि वीर्य्याणि पराक्रमान् प्रवक्ततान्यहं नु प्रवोचम् यथा स वज्र्यहिमहन् तदवयवा अपोधऊर्ध्वं चकार तं ततर्द पर्वतानां सकाशात्प्रवक्षणा अभिनत्तथाऽहं शत्रून् हन्याम् तानऽधऊर्ध्वम् नुतर्देयम् दुर्गादीनां सकाशाद्युद्धायागताः सेना भिन्द्याम् ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ईश्वरेणोत्पादितोयमग्निमयः सूर्य्यलोको यथा स्वकीयानि स्वाभाविकगुणयुक्तान्यन्नादीनि प्रकाशाकर्षणदाहछेदनवर्षोत्पत्ति निमित्तानिकर्माण्यहर्निशं करोति तथैव प्रजापालनतत्परैराजपुरुषैरपि भवितव्यम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सूर्य व मेघांच्या युद्धाचे वर्णन केल्यामुळे या सूक्ताची मागच्या सूक्तातील अग्नी शब्दाच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ईश्वराने उत्पन्न केलेला अग्निमय सूर्यलोक जसा आपल्या स्वाभाविक गुणांनी युक्त अनादी प्रकाश, आकर्षण, दाह, छेदन व पर्जन्याची उत्पत्ती इत्यादी काम दिवस-रात्र करतो तसे प्रजापालन करण्यास तत्पर राजपुरुषांनीही आपले कार्य नित्य करावे. ॥ १ ॥