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त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अङ्गि॑रा॒ ऋषि॑र्दे॒वो दे॒वाना॑मभवः शि॒वः सखा॑। तव॑ व्र॒ते क॒वयो॑ विद्म॒नाप॒सोऽजा॑यन्त म॒रुतो॒ भ्राज॑दृष्टयः ॥

English Transliteration

tvam agne prathamo aṅgirā ṛṣir devo devānām abhavaḥ śivaḥ sakhā | tava vrate kavayo vidmanāpaso jāyanta maruto bhrājadṛṣṭayaḥ ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। प्र॒थ॒मः। अङ्गि॑राः। ऋषिः॑। दे॒वः। दे॒वाना॑म्। अ॒भ॒वः॒। शि॒वः। सखा॑। तव॑। व्र॒ते। क॒वयः॑। वि॒द्म॒नाऽअ॑पसः। अजा॑यन्त। म॒रुतः॑। भ्राज॑त्ऽऋष्टयः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:31» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:32» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:7» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उस के पहिले मन्त्र में ईश्वर का प्रकाश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) आप ही प्रकाशित और विज्ञानस्वरूपयुक्त जगदीश्वर जिसका कारण (त्वम्) आप (प्रथमः) अनादि स्वरूप अर्थात् जगत् कल्प की आदि में सदा वर्त्तमान (अङ्गिराः) ब्रह्माण्ड के पृथिवी आदि शरीर के हस्त पाद आदि अङ्गों के रस रूप अर्थात् अन्तर्यामी (ऋषिः) सर्व विद्या से परिपूर्ण वेद के उपदेश करने और (देवानाम्) विद्वानों के (देवः) आनन्द उत्पन्न करने (शिवः) मङ्गलमय तथा प्राणियों को मङ्गल देने तथा (सखा) उनके दुःख दूर करने से सहायकारी (अभवः) होते हो और जो (विद्मनापसः) ज्ञान के हेतु काम युक्त (मरुतः) धर्म को प्राप्त मनुष्य (तव) आप की (व्रते) आज्ञा नियम में रहते हैं, इससे वही (भ्राजदृष्टयः) प्रकाशित अर्थात् ज्ञानवाले (कवयः) कवि विद्वान् (अजायन्त) होते हैं ॥ १ ॥
Connotation: - जो ईश्वर की आज्ञा पालन धर्म और विद्वानों के संग के सिवाय और कुछ काम नहीं करते हैं, उनकी परमेश्वर के साथ मित्रता होती है, फिर उस मित्रता से उनके आत्मा में सत् विद्या का प्रकाश होता है और वे विद्वान् होकर उत्तम काम का अनुष्ठान करके सब प्राणियों के सुख करने के लिये प्रसिद्ध होते हैं ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्रादिमेनेश्वर उपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने! यतस्त्वं प्रथमोऽङ्गिरा ऋषिर्देवानां देवः शिवः सखाऽभवो भवसि ये विद्मनापसो मनुष्यास्तव व्रते वर्त्तन्ते तस्मात्त एव भ्राजदृष्टयः कवयोऽजायन्त जायन्ते ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) जगदीश्वरः (अग्ने) स्वप्रकाशविज्ञानस्वरूपेश्वर (प्रथमः) अनादिस्वरूपो जगतः कल्पादौ सदा वर्त्तमानः (अङ्गिराः) पृथिव्यादीनां ब्रह्माण्डस्य शिरआदीनां शरीरस्य रसोऽन्तर्यामिरूपेणावस्थितः। आङ्गिरसो अङ्गाना हि रसः। (श०ब्रा०१४.३.१.२१) (ऋषिः) सर्वविद्याविद्वेदोपदेष्टा (देवः) आनन्दोत्पादकः (देवानाम्) विदुषाम् (अभवः) भवसि। अत्र लडर्थे लङ्। (शिवः) मङ्गलमयो जीवानां मङ्गलकारी च (सखा) सर्वदुःखविनाशनेन सहायकारी (तव) जगदीश्वरस्य (व्रते) धर्माचारपालनाज्ञानियमे (कवयः) विद्वांसः (विद्मनापसः) वेदनं विद्म तद्विद्यते येषु तानि विज्ञाननिमित्तानि समन्तादपांसि कर्माणि येषां ते (अजायन्त) जायन्ते। अत्र लडर्थे लङ्। (मरुतः) धर्मप्राप्ता मनुष्याः। मरुत इति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) (भ्राजदृष्टयः) भ्राजत् प्रकाशमाना विद्या ऋष्टिर्ज्ञानं येषान्ते ॥ १ ॥
Connotation: - य ईश्वराज्ञाधर्मविद्वत्सङ्गान् विहाय किमपि न कुर्वन्ति, तेषां जगदीश्वरेण सह मित्रता भवति, पुनस्तन्मित्रतया तेषामात्मसु सत्यविद्याप्रकाशो जायते, पुनस्ते विद्वांसो भूत्वोत्तमानि कर्माण्यनुष्ठाय सर्वेषां प्राणिनां सुखप्रापकत्वेन प्रसिद्धा भवन्तीति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सेनापती इत्यादींच्या अनुयोगी अर्थाच्या प्रकाशाने मागच्या सूक्ताबरोबर या सूक्ताची संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे ईश्चराच्या आज्ञेचे पालन, धर्म विद्वानांचा संग याशिवाय दुसरे कोणतेही काम करीत नाहीत, त्यांची परमेश्वराबरोबर मैत्री असते. त्या मैत्रीमुळे त्यांच्या आत्म्यामध्ये सत् विद्येचा प्रकाश होतो व ते विद्वान बनून उत्तम कामाचे अनुष्ठान करून सर्व प्राण्यांना सुख देण्यासाठी प्रसिद्ध असतात. ॥ १ ॥