Go To Mantra

आ घा॑ गम॒द्यदि॒ श्रव॑त्सह॒स्रिणी॑भिरू॒तिभिः॑। वाजे॑भि॒रुप॑ नो॒ हव॑म्॥

English Transliteration

ā ghā gamad yadi śravat sahasriṇībhir ūtibhiḥ | vājebhir upa no havam ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। घ॒। ग॒म॒त्। यदि॑। श्रव॑त्। स॒ह॒स्रिणी॑भिः। ऊ॒तिऽभिः॑। वाजे॑भिः। उप॑। नः॒। हव॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:8


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

वह किसके साथ प्राप्त हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - (यदि) जो वह सभा वा सेना का स्वामी (नः) हम लोगों की (आ) (हवम्) प्रार्थना को (श्रवत्) श्रवण करे (घ) वही (सहस्रिणीभिः) हजारों प्रशंसनीय पदार्थ प्राप्त होते हैं जिनमें, उन (ऊतिभिः) रक्षा आदि व्यवहार वा (वाजेभिः) अन्न ज्ञान और युद्धनिमित्तक विजय के साथ प्रार्थना को (उपागमत्) अच्छे प्रकार प्राप्त हो॥८॥
Connotation: - जहाँ मनुष्य सभा वा सेना के स्वामी का सेवन करते हैं, वहाँ वह सभाध्यक्ष अपनी सेना के अङ्ग वा अन्नादि पदार्थों के साथ उनके समीप स्थिर होता है। इस की सहायता के विना किसी को सत्य-सत्य सुख वा विजय नहीं होते हैं॥८॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

स केन सहागच्छदित्युपदिश्यते॥

Anvay:

यदि स इन्द्रः सभासेनाध्यक्षो नोऽस्माकमाहवमाह्वानं श्रवत् शृणुयात्तर्हि सद्य स एव सहस्रिणीभिरूतिभिर्वाजेभिः सह नोऽस्माकं हवमाह्वानमुपागमदुपागच्छेत्॥८॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (घ) एव। ऋचि तुनुघ० इति दीर्घः। (गमत्) प्राप्नुयात्। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च। (यदि) चेत् (श्रवत्) शृणुयात्। अत्र श्रुधातोर्लेट् बहुलं छन्दसि इति श्नोर्लुक्। (सहस्रिणीभिः) सहस्राणि प्रशस्तानि पदार्थप्रापणानि विद्यन्ते यासु ताभिः। अत्र प्रशंसार्थ इनिः। (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः सह (वाजेभिः) अन्नज्ञानयुद्धादिभिः सह। अत्र बहुलं छन्दसि इति भिस ऐस् न (उप) सामीप्ये (नः) अस्माकम् (हवम्) प्रार्थनादिकं कर्म॥८॥
Connotation: - यत्र मनुष्यैः सत्यभावेन यस्य सभासेनाध्यक्षस्य सेवनं क्रियते, तत्र संरक्षणाय ससेनाङ्गै रत्नादिभिस्सह तानुपतिष्ठते नैतस्य सहायेन विना कस्यचित्सत्यौ सुखविजयौ सम्भवत इति॥८॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसे जिथे सभा सेनाध्यक्ष यांचा स्वीकार करतात तिथे तो संरक्षणासाठी सेनेच्या सर्व अंगांगांसह व अन्न इत्यादी पदार्थांसह उपस्थित असतो. त्याच्या साह्याखेरीज कुणालाही खरे सुख व विजय मिळू शकत नाही. ॥ ८ ॥