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स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते। विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑॥

English Transliteration

stotraṁ rādhānām pate girvāho vīra yasya te | vibhūtir astu sūnṛtā ||

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Pad Path

स्तो॒त्रम्। रा॒धा॒ना॒म्। प॒ते॒। गिर्वा॑हः। वी॒र॒। यस्य॑। ते॒। विऽभू॑तिः। अ॒स्तु॒। सु॒नृता॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में इन्द्र शब्द से सभा वा सेना के स्वामी का उपदेश किया है॥

Word-Meaning: - हे (गिर्वाहः) जानने योग्य पदार्थों के जानने और सुख-दुःखों के नाश करनेवाले तथा (राधानाम्) जिन पृथिवी आदि पदार्थों में सुख सिद्ध होते हैं, उनके (पते) पालन करनेवाले सभा वा सेना के स्वामी विद्वान् (यस्य) जिन (ते) आपका (सूनृता) श्रेष्ठता से सब गुण का प्रकाश करनेवाला (विभूतिः) अनेक प्रकार का ऐश्वर्य्य है, सो आप के सकाश से हम लोगों के लिये (स्तोत्रम्) स्तुति (नः) हमारे पूर्वोक्त (मदाय) आनन्द और (शुष्मिणे) बल के लिये (अस्तु) हो॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में पिछले तीसरे मन्त्र से (मदाय) (शुष्मिणे) (नः) इन तीन पदों अनुवृत्ति है। हम लोगों को सब का स्वामी जो कि वेदों से परिपूर्ण विज्ञानरत ऐश्वर्य्ययुक्त और यथायोग्य न्याय करनेवाला सभाध्यक्ष वा सेनापति विद्वान् है, उसी को न्यायाधीश मानना चाहिये॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रशब्देन सभासेनाध्यक्ष उपदिश्यते॥

Anvay:

हे गिर्वाहो वीर राधानां पते सभासेनाध्यक्ष विद्वन् ! यस्य ते तव सूनृता विभूतिरस्ति तस्य तव सकाशादस्माभिर्गृहीतं स्तोत्रं नोऽस्माकं प्रदाय शुष्मिणेऽस्तु॥५॥

Word-Meaning: - (स्तोत्रम्) स्तुवन्ति येन तत् (राधानाम्) राध्नुवन्ति सुखानि येषु पृथिव्यादिधनेषु तेषाम्। राध इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) अत्र हलश्च। (अष्टा०३.३.१२१) इति घञ्। अत्र सायणाचार्येण राध्नुवन्ति एभिरिति राधनानि धनानीत्यशुद्धमुक्तं घञन्तस्य नियतपुंल्लिङ्गत्वात् (पते) पालयितः (गिर्वाहः) गीर्भिर्वेदस्थवाग्भिरुह्यते प्राप्यते यस्तत्सम्बुद्धौ। अत्र कारकोपपदाद्वहधातोः सर्वधातुभ्योऽसुन्। (उणा०४.१९६) अनेनासुन् प्रत्ययः। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति पूर्वपदस्य दीर्घादेशो न। (वीर) अजति वेद्यं जानाति प्रक्षिपति विनाशयति सर्वाणि दुःखानि वा यस्तत्सम्बुद्धौ। अत्र स्फायितञ्चिवञ्चि० (उणा०२.१२) अनेनाजेरक् प्रत्ययः। (यस्य) स्पष्टार्थः (ते) तव (विभूतिः) विविधमैश्वर्यम् (अस्तु) भवतु (सूनृता) सुष्ठु ऋतं यस्यां सा। पृषोदरादी० इति दीर्घत्वं नुडागमश्च॥५॥
Connotation: - अत्र पूर्वस्मान्मन्त्रात् (मदाय) (शुष्मिणे) (नः) इति पदत्रयमनुवर्त्तते। मनुष्यैर्यः सर्वस्य स्वामी वेदोक्तगुणाधिष्ठानो विज्ञानरतः सत्यैश्वर्य्यः यथायोग्यन्यायकारी सभाध्यक्षः सेनापतिर्वा विद्वानस्ति स एवास्माभिर्न्यायाधीशो मन्तव्य इति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात मागच्या तिसऱ्या मंत्राने (मदाय) (शुष्मिणे) (नः) या तीन पदांची अनुवृत्ती होते. सर्वांचा स्वामी, वेदांचा विज्ञानयुक्त जाणता, ऐश्वर्ययुक्त व यथायोग्य न्यायकर्ता, सभाध्यक्ष किंवा सेनापती विद्वान असेल त्यालाच माणसांनी न्यायाधीश मानले पाहिजे. ॥ ५ ॥