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तथा॒ तद॑स्तु सोमपाः॒ सखे॑ वज्रि॒न्तथा॑ कृणु। यथा॑ त उ॒श्मसी॒ष्टये॑॥

English Transliteration

tathā tad astu somapāḥ sakhe vajrin tathā kṛṇu | yathā ta uśmasīṣṭaye ||

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Pad Path

तथा॑। तत्। अ॒स्तु॒। सो॒म॒ऽपाः॒। सखे॑। व॒ज्रि॒न्। तथा॑। कृ॒णु॒। यथा॑। ते॒। उ॒श्मसि॑। इ॒ष्टये॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:30» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:30» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उस सभाध्यक्ष को क्या-क्या उपदेश करने के योग्य है, यह अगले मन्त्र में कहा है॥

Word-Meaning: - हे (सोमपाः) सांसारिक पदार्थों से जीवों की रक्षा करनेवाले (वज्रिन्) सभाध्यक्ष ! जैसे हम लोग (इष्टये) अपने सुख के लिये (ते) आप शस्त्रास्त्रवित् (सखे) मित्र की मित्रता के अनुकूल जिस मित्राचरण के करने को (उश्मसि) चाहते और करते हैं (तथा) उसी प्रकार से आपकी (तत्) मित्रता हमारे में (अस्तु) हो, आप (तथा) वैसे (कृणु) कीजिये॥१२॥
Connotation: - जैसे सब का हित चाहनेवाला और सकल विद्यायुक्त सभा सेनाध्यक्ष निरन्तर प्रजा की रक्षा करे, वैसे ही प्रजा सेना के मनुष्यों को भी उसकी रक्षा की सम्भावना करनी चाहिये॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभाध्यक्षाय किं किमुपदेशनीयमित्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे सोमपा वज्रिन्सखे सभाध्यक्ष ! यथा वयमिष्टये ते तवाऽनुकूलं यन्मित्राचरणं कर्त्तुमुश्मसि कामयामहे कुर्म्मश्च तथा तदस्तु तथा तत् त्वमपि कृणु कुरु॥१२॥

Word-Meaning: - (तथा) तेन प्रकारेण (तत्) मित्राचरणम् (अस्तु) भवतु (सोमपाः) यः सोमैर्जगत्युत्पन्नैः पदार्थैः सर्वान् पाति रक्षति तत्संबुद्धौ (सखे) सर्वेषां सुखदातः (वज्रिन्) वज्रः सर्वदुःखनाशनो बहुविधो दृढो बोधो यस्यास्तीति तत्संबुद्धौ। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्। (तथा) प्रकारार्थे (कृणु) कुरु (यथा) येन प्रकारेण (ते) तव (उश्मसि) कामयामहे। अत्र इदन्तो मसि इति मसिरादेशः। (इष्टये) इष्टसुखसिद्धये॥१२॥
Connotation: - यथा सर्वेषां हितैषी सकलविद्यान्वितः सभासेनाध्यक्षः प्रजाः सततं रक्षेत्, तथैव प्रजासेनास्थैरपि मनुष्यैस्तदवनं सदा सम्भावनीयमिति॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे सर्वांचा हितेच्छू व संपूर्ण विद्यायुक्त सभेच्या सेनाध्यक्षाने प्रजेचे रक्षण करावे, तसेच प्रजेने व सेनेनेही त्याचे रक्षण करावे. ॥ १२ ॥