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ता नो॑ अ॒द्य व॑नस्पती ऋ॒ष्वावृ॒ष्वेभिः॑ सो॒तृभिः॑। इन्द्रा॑य॒ मधु॑मत्सुतम्॥

English Transliteration

tā no adya vanaspatī ṛṣvāv ṛṣvebhiḥ sotṛbhiḥ | indrāya madhumat sutam ||

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Pad Path

ता। नः॒। अ॒द्य। व॒न॒स्पती॒ इति॑। ऋ॒ष्वौ। ऋ॒ष्वेभिः॑। सो॒तृऽभिः॑। इन्द्रा॑य। मधु॑ऽमत्। सु॒त॒म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:28» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे करने चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - जो (सोतृभिः) रस खींचने में चतुर (ऋष्वेभिः) बड़े विद्वानों ने (ऋष्वौ) अतिस्थूल (वनस्पती) काठ के उखली-मुसल सिद्ध किये हों, जो (नः) हमारे (इन्द्राय) ऐश्वर्य प्राप्त करानेवाले व्यवहार के लिये (अद्य) आज (मधुमत्) मधुर आदि प्रशंसनीय गुणवाले पदार्थों को (सुतम्) सिद्ध करने के हेतु होते हों (ता) वे सब मनुष्यों को साधने योग्य हैं॥८॥
Connotation: - जैसे पत्थर के मूसल और उखली होते हैं, वैसे ही काष्ठ, लोहा, पीतल, चाँदी, सोना तथा औरों के भी किये जाते हैं, उन उत्तम उलूखल मुसलों से मनुष्य औषध आदि पदार्थों के अभिषव अर्थात् रस आदि खींचने के व्यवहार करें॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कथंभूते कार्ये इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

यौ सोतृभिर्ऋष्वौ वनस्पती सम्पादितौ स्तो यौ नोऽस्माकमिन्द्रायाद्य मधुमद्वस्तु सुतं सम्पादनहेतुभवतस्तौ सर्वैः सम्पादनीयौ॥८॥

Word-Meaning: - (ता) तौ मुसलोलूखलाख्यौ। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (नः) अस्माकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (वनस्पती) काष्ठमयौ (ऋष्वौ) महान्तौ। ऋष्व इति महन्नामसु पठितम्। (निघं०३.३) (ऋष्वेभिः) महद्भिर्विद्वद्भिः। बहुलं छन्दसि इति भिस ऐस् न। (सोतृभिः) अभिषवकरणकुशलैः (इन्द्राय) ऐश्वर्यप्रापकाय व्यवहाराय (मधुमत्) मधवो मधुरादयः प्रशस्ता गुणा विद्यते यस्मिन् तत्। अत्र प्रशंसार्थे मतुप्। (सुतम्) सम्पादितुं वस्तु॥८॥
Connotation: - यथा पाषाणस्य मुसलोलूखलानि भवन्ति, तथैव काष्ठायःपित्तलरजतसुवर्णादीनामपि क्रियन्ते, तैः श्रेष्ठैरोषधाभिषवादीन् साधयेयुरिति॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे दगडाचे उखळ व मुसळ असते तसेच लाकूड, लोखंड, पितळ, चांदी, सोने इत्यादींचेही असते. त्या उत्तम उखळ मुसळांनी माणसांनी औषधी इत्यादींपासून अभिषव अर्थात रस काढावा. ॥ ८ ॥