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यम॑ग्ने पृ॒त्सु मर्त्य॒मवा॒ वाजे॑षु॒ यं जु॒नाः। स यन्ता॒ शश्व॑ती॒रिषः॑॥

English Transliteration

yam agne pṛtsu martyam avā vājeṣu yaṁ junāḥ | sa yantā śaśvatīr iṣaḥ ||

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Pad Path

यम्। अ॒ग्ने॒। पृ॒त्ऽसु। मर्त्य॑म्। अवाः॑। वाजे॑षु। यम्। जु॒नाः। सः। यन्ता॑। शश्व॑तीः। इषः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:27» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) सेनाध्यक्ष ! आप (यम्) जिस युद्ध करनेवाले (मर्त्यम्) मनुष्य को (पृत्सु) सेनाओं के बीच (अवाः) रक्षा करें (यम्) जिस धार्मिक शूरवीर को (वाजेषु) संग्रामों में (जुनाः) प्रेरें जो इस (शश्वतीः) अनादि काल से वर्त्तमान (इषः) प्रजा की निरन्तर रक्षा करें, इस कारण से (सः) सो आप हमारा (यन्ता) नियमों में चलानेवाला नायक हूजिये, इस प्रकार हम प्रतिज्ञा करते हैं॥७॥
Connotation: - जैसे जगदीश्वर जो अनादि काल से वर्त्तमान प्रजा की रक्षा, रचना और व्यवस्था करनेवाला है, वैसे जो मनुष्य इस सर्वव्यापी सब प्रकार की रक्षा करनेवाले परमेश्वर की उपासना कर यथोक्त काम करता है, उसको न कभी पीड़ा वा पराजय होता है॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे जगदीश्वर ! त्वं यं मर्त्यं पृत्स्ववा रक्षेर्यं च वाजेषु जुनाः प्रेरयेर्य इमाः शश्वतीः प्रजाः सततमवरक्षेरस्मात् कारणात् स भवानस्माकं सदा यन्ता भवत्विति वयं प्रतिजानीमः॥७॥

Word-Meaning: - (यम्) धार्मिकं शूरवीरम् (अग्ने) स्वबलतेजसा प्रकाशमान (पृत्सु) पृतनासु। पदादिषु मांस्पृत्स्नूनामुपसंख्यानम्। (अष्टा०वा०६.१.६३) इति वार्त्तिकेन पृतनाशब्दस्य पृदादेशः। (मर्त्यम्) मनुष्यम् (अवाः) रक्षेः। अयं लेट्प्रयोगः। (वाजेषु) संग्रामेषु (यम्) योद्धारम् (जुनाः) प्रेरयेः। अयं ‘जुन गतौ’ इत्यस्य लेट्प्रयोगः। (सः) मनुष्यः (यन्ता) शत्रूणां निग्रहीता (शश्वतीः) अनादिस्वरूपाः (इषः) इष्यन्ते यास्ताः प्रजाः। अत्र कृतो बहुलम् इति कर्मणि क्विप्॥७॥
Connotation: - यथा यो जगदीश्वर एवानादिकालाद् वर्तमानायाः प्रजाया रक्षारचनाव्यवस्थाकारकोऽस्ति, तथा यो मनुष्य एतं सर्वव्यापिनं सर्वतोऽभिरक्षकं परमेश्वरमुपास्यैवं विदधाति तस्य नैव कदाचित्पीडापराजयौ भवत इति॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा जगदीश्वर अनादीकाळापासून असलेल्या प्रजेचे रक्षण, रचना व व्यवस्था करणारा आहे, तसे जो माणूस या सर्वव्यापी सर्व प्रकारे रक्षण करणाऱ्या परमेश्वराची उपासना करून यथोक्त काम करतो, त्याला कधी त्रास होत नाही व त्याचा पराभव होत नाही. ॥ ७ ॥