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वि॒भ॒क्तासि॑ चित्रभानो॒ सिन्धो॑रू॒र्मा उ॑पा॒क आ। स॒द्यो दा॒शुषे॑ क्षरसि॥

English Transliteration

vibhaktāsi citrabhāno sindhor ūrmā upāka ā | sadyo dāśuṣe kṣarasi ||

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Pad Path

वि॒ऽभ॒क्ता। अ॒सि॒। चि॒त्र॒भा॒नो॒ इति॑ चित्रऽभानो। सिन्धोः॑। ऊ॒र्मौ। उ॒पा॒के। आ। स॒द्यः। दा॒शुषे॑। क्ष॒र॒सि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:27» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - जैसे हे (चित्रभानो) विविधविद्यायुक्त विद्वन् मनुष्य ! आप (सिन्धोः) समुद्र की (ऊर्मौ) तरंगों में जल के बिन्दु कणों के समान सब पदार्थ विद्या के (विभक्ता) अलग-अलग करनेवाले (असि) हैं और (दाशुषे) विद्या का ग्रहण वा अनुष्ठान करनेवाले मनुष्य के लिये (उपाके) समीप सत्य बोध उपदेश को (सद्यः) शीघ्र (आक्षरसि) अच्छे प्रकार वर्षाते हो, वैसे भाग्यशाली विद्वान् आप हम सब लोगों के सत्कार के योग्य हैं॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे समुद्र के जलकण अलग हुए आकाश को प्राप्त होकर वहाँ इकट्ठे होके वर्षते हैं, वैसे ही विद्वान् अपनी विद्या से सब पदार्थों का विभाग करके उनका बार-बार मनुष्यों के आत्माओं में प्रवेश किया करते हैं॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

यथा हे चित्रभानो विविधविद्यायुक्त विद्वँस्त्वं सिन्धोरूर्मौ जलकणविभाग इव सर्वेषां पदार्थानां विद्यानां विभक्तासि, दाशुष उपाके सत्योपदेशेन बोधान् सद्य आक्षरसि समन्ताद्वर्षसि तथा त्वं भाग्यशाली विद्वानस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि॥६॥

Word-Meaning: - (विभक्ता) विविधानां पदार्थानां सम्भागकर्त्ता (असि) वर्त्तसे (चित्रभानो) यथा चित्रा अद्भुता भानवो विज्ञानादिदीप्तयो यस्य विदुषस्तत्सम्बुद्धौ तथा (सिन्धोः) समुद्रस्य (ऊर्मौ) तरङ्ग इव (उपाके) समीपे (आ) सर्वतः (सद्यः) शीघ्रम् (दाशुषे) विद्याग्रहणाऽनुष्ठानकृतवते मनुष्याय (क्षरसि) वर्षसि॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा समुद्रस्य जलकणाः पृथक् भूत्वा आकाशं प्राप्यैकीभूत्वा अभिवर्षन्ति यथा विद्वान् विद्याभिः सर्वान् पदार्थान् विभज्यैतान् पुनः पुनर्मनुष्यात्मसु प्रकाशयेत् तथाऽस्माभिः कथं नानुष्ठातव्यम्॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे समुद्रातील जल पृथक होऊन आकाशात एकत्र होते व नंतर पर्जन्यरूपाने बरसात होते, तसेच विद्वान आपल्या विद्येने सर्व पदार्थांना सूक्ष्म करून त्यांना माणसांच्या आत्म्यात प्रविष्ट करवितात. ॥ ६ ॥