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स रे॒वाँइ॑व वि॒श्पति॒र्दैव्यः॑ के॒तुः शृ॑णोतु नः। उ॒क्थैर॒ग्निर्बृ॒हद्भा॑नुः॥

English Transliteration

sa revām̐ iva viśpatir daivyaḥ ketuḥ śṛṇotu naḥ | ukthair agnir bṛhadbhānuḥ ||

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Pad Path

सः। रे॒वान्ऽइ॑व। वि॒श्पतिः॑। दैव्यः॑। के॒तुः। शृ॒णो॒तु॒। नः॒। उ॒क्थैः। अ॒ग्निः। बृ॒हत्ऽभा॑नुः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:27» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् मनुष्य ! तुम जो (दैव्यः) देवों में कुशल (केतुः) रोग को दूर करने में हेतु (विश्पतिः) प्रजा को पालनेवाला (बृहद्भानुः) बहुत प्रकाशयुक्त (रेवान् इव) अत्यन्त धनवाले के समान (अग्निः) सबको सुख प्राप्त करनेवाला अग्नि है (उक्थैः) वेदोक्त स्तोत्रों के साथ सुना जाता है, उसको (शृणोतु) सुन और (नः) हम लोगों के लिये सुनाइये॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पूर्ण धनवाला विद्वान् मनुष्य धन भोगने योग्य पदार्थों से सब मनुष्यों को सुखसंयुक्त करता और सब की वार्त्ताओं को सुनता है, वैसे ही जगदीश्वर सबकी की हुई स्तुति को सुनकर उनको सुखसंयुक्त करता है॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

Anvay:

हे विद्वँस्त्वं यो दैव्यः केतुर्विश्पतिर्बृहद्भानू रेवान् इवाग्निरस्ति तमुक्थैः शृणोतु नोऽस्मभ्यं श्रावयतु॥१२॥

Word-Meaning: - (सः) श्रीमान् (रेवान् इव) महाधनाढ्य इव। अत्र रैशब्दान्मतुप्। रयेर्मतौ बहुलम्। (अष्टा०वा०६.१.३७) इति वार्त्तिकेन सम्प्रसारणं छन्दसीरः (अष्टा०८.२.१५) इति वत्वम्। (विश्पतिः) विशां प्रजानां पतिः पालनहेतुः। अत्र वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति व्रश्चभ्रस्जसृज० (अष्टा०८.२.३६) अनेन षकारादेशो न। (दैव्यः) देवेषु कुशलः। अत्र देवाद्यञञौ। (अष्टा०वा०४.१.८५) अनेन प्राग्दीव्यतीयकुशलेऽर्थे देवशब्दाद्यञ् प्रत्ययः। (केतुः) रोगदूरकरणे हेतुः (शृणोतु) श्रावयतु वा। अत्र पक्षेऽन्तर्गतो ण्यर्थः। (नः) अस्मभ्यम् (उक्थैः) वेदस्तोत्रैः सुखप्रापकः (बृहद्भानुः) बृहन्तो भानवः प्रकाशा यस्य सः॥१२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा पूर्णधनो विद्वान् मनुष्यो धनभोगैः सर्वान् मनुष्यान् सुखयति, सर्वेषां वार्त्ताः प्रीत्या शृणोति, तथैव जगदीश्वरोऽपि प्रीत्या सम्पादितां स्तुतिं श्रुत्वा तान् सदैव सुखयतीति॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा पूर्ण धनयुक्त विद्वान माणूस धन भोगण्यायोग्य पदार्थांनी सर्व माणसांना सुखाने युक्त करतो व सर्वांच्या वार्ता प्रेमाने ऐकतो तसेच जगदीश्वर सर्वांनी केलेली स्तुती ऐकून त्यांना सुख देतो. ॥ १२ ॥