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आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑। सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः॥

English Transliteration

ā hi ṣmā sūnave pitāpir yajaty āpaye | sakhā sakhye vareṇyaḥ ||

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Pad Path

आ। हि। स्म॒। सू॒नवे॑। पि॒ता। आ॒पिः। यज॑ति। आ॒पये॑। सखा॑। सख्ये॑। वरे॑ण्यः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:26» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:6» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह किस प्रकार का है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (पिता) पालन करनेवाला (सूनवे) पुत्र के (सखा) मित्र (सख्ये) मित्र के और (आपिः) सुख देनेवाला विद्वान् (आपये) उत्तम गुण व्याप्त होने विद्यार्थी के लिये (आयजति) अच्छे प्रकार यत्न करता है, वैसे परस्पर प्रीति के साथ कार्यों को सिद्धकर (हि) निश्चय करके (स्म) वर्त्तमान में उपकार के लिये तुम सङ्गत हो॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अपने लड़कों को सुख सम्पादक उन पर कृपा करनेवाला पिता, स्वमित्रों को सुख देनेवाला मित्र और विद्यार्थियों को विद्या देनेवाला विद्वान् अनुकूल वर्त्तता है, वैसे ही सब मनुष्य सबके उपकार के लिये अच्छे प्रकार निरन्तर यत्न करें, ऐसा ईश्वर का उपदेश है॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा पिता सूनवे सखा सख्य आपिरापय आयजति, तथैवान्योऽयं सम्प्रीत्या कार्याणि संसाध्य हि ष्म सर्वोपकाराय यूयं सङ्गच्छध्वम्॥३॥

Word-Meaning: - (आ) अभितः (हि) निश्चये (स्म) स्पष्टार्थे। अत्र निपातस्य च इति दीर्घः। (सूनवे) अपत्याय (पिता) पालकः (आपिः) सुखप्रापकः। अत्र ‘आप्लृ व्याप्तौ’ अस्मात्। इञजादिभ्यः। (अष्टा०वा०३.३.१०८) इति वार्त्तिकेन ‘इञ्’ प्रत्ययः। (यजति) सङ्गच्छते (आपये) सद्गुणव्यापिने (सखा) सुहृत् (सख्ये) सुहृदे (वरेण्यः) सर्वत उत्कृष्टतमः॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सन्तानसुखसम्पादकः कृपायमाणः पिता मित्राणां सुखप्रदः सखा विद्यार्थिने विद्याप्रदो विद्वाननुकूलो वर्त्तते, तथैव सर्वे मनुष्याः सर्वोपकाराय सततं प्रयतेरन्नितीश्वरोपदेशः॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा आपल्या मुलांना सुख देणारा व त्यांच्यावर कृपा करणारा पिता, स्वमित्रांना सुख देणारा मित्र व विद्यार्थ्यांना विद्या देणारा विद्वान त्यांच्या अनुकूल वागतो तसेच सर्व माणसांनी सर्वांवर उपकार करण्यासाठी सतत यत्न करावा असा ईश्वराचा उपदेश आहे. ॥ ३ ॥