Go To Mantra

ऋ॒तेन॒ यावृ॑ता॒वृधा॑वृ॒तस्य॒ ज्योति॑ष॒स्पती॑। ता मि॒त्रावरु॑णा हुवे॥

English Transliteration

ṛtena yāv ṛtāvṛdhāv ṛtasya jyotiṣas patī | tā mitrāvaruṇā huve ||

Mantra Audio
Pad Path

ऋ॒तेन॑। यौ। ऋ॒त॒ऽवृधौ॑। ऋ॒तस्य॑। ज्योति॑षः। पती॒ इति॑। ता। मि॒त्रावरु॑णा। हु॒वे॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:23» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - मैं (यौ) जो (ऋतेन) परमेश्वर ने उत्पन्न करके धारण किये हुए (ऋतावृधौ) जल को बढ़ाने और (ऋतस्य) यथार्थ स्वरूप (ज्योतिषः) प्रकाश के (पती) पालन करनेवाले (मित्रावरुणौ) सूर्य और वायु हैं, उनको (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥५॥
Connotation: - न सूर्य और वायु के विना जल और ज्योति अर्थात् प्रकाश की योग्यता, न ईश्वर के उत्पादन किये विना सूर्य्य और वायु की उत्पत्ति का सम्भव और न इनके विना मनुष्यों के व्यवहारों की सिद्धि हो सकती है॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

Anvay:

अहं यावृतेन जगदीश्वरेणोत्पाद्य धारितावृतावृधावृतस्य ज्योतिषस्पती मित्रावरुणौ स्तस्तौ हुवे॥५॥

Word-Meaning: - (ऋतेन) सत्यरूपेण ब्रह्मणा निर्मितौ सन्तौ (यौ) (ऋतावृधौ) ऋतं सत्यं कारणं जलं वा वर्द्धयतस्तौ। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। अन्येषामपि दृश्यते इति दीर्घश्च। (ऋतस्य) यथार्थस्वरूपस्य (ज्योतिषः) प्रकाशस्य (पती) पालयितारौ। अत्र षष्ठ्याः पतिपुत्रपृष्ठपार० (अष्टा०८.३.५३) अनेन विसर्जनीयस्य सकारादेशः। (ता) तौ (मित्रावरुणा) मित्रश्च वरुणश्च द्वौ सूर्यवायू। अत्र देवताद्वन्द्वे च। (अष्टा०६.३.३६) अनेन पूर्वपदस्यानङादेशः। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (हुवे) आददे। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् च॥५॥
Connotation: - नैव सूर्यवायुभ्यां विना जलज्योतिषोरुत्पत्तेः सम्भवोऽस्ति नैव चेश्वरोत्पादनेन विना सूर्य्यवाय्वोरुत्पत्तिर्भवितुं शक्या, न चैताभ्यां विना मनुष्याणां व्यवहारसिद्धिर्भवितुमर्हतीति॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - सूर्य व वायूशिवाय जलवृद्धी व ज्योती अर्थात प्रकाश निर्माण होऊ शकत नाही. ईश्वराने निर्माण केल्याखेरीज सूर्य व वायूची उत्पत्तीही शक्य नाही व त्यांच्याखेरीज माणसांच्या व्यवहाराची सिद्धी होऊ शकत नाही. ॥ ५ ॥