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अ॒पां नपा॑त॒मव॑से सवि॒तार॒मुप॑ स्तुहि। तस्य॑ व्र॒तान्यु॑श्मसि॥

English Transliteration

apāṁ napātam avase savitāram upa stuhi | tasya vratāny uśmasi ||

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Pad Path

अ॒पाम्। नपा॑तम्। अव॑से। स॒वि॒तार॑म्। उप॑। स्तु॒हि॒। तस्य॑। व्र॒तानि॑। उ॒श्म॒सि॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:22» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हे धार्मिक विद्वान् मनुष्य ! जैसे मैं (अवसे) रक्षा आदि के लिये (अपाम्) जो सब पदार्थों को व्याप्त होने अन्त आदि पदार्थों के वर्त्ताने तथा (नपातम्) अविनाशी और (सवितारम्) सकल ऐश्वर्य्य के देनेवाले परमेश्वर की स्तुति करता हूँ, वैसे तू भी उसकी (उपस्तुहि) निरन्तर प्रशंसा कर। हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग जिसके (व्रतानि) निरन्तर धर्मयुक्त कर्मों को (उश्मसि) प्राप्त होने की कामना करते हैं, वैसे (तस्य) उसके गुण कर्म्म और स्वभाव को प्राप्त होने की कामना तुम भी करो॥६॥
Connotation: - जैसे विद्वान् मनुष्य परमेश्वर की स्तुति करके उसकी आज्ञा का आचरण करता है, वैसे तुम लोगों को भी उचित है कि उस परमेश्वर के रचे हुए संसार में अनेक प्रकार के उपकार ग्रहण करो॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स स्तोतव्य इत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे विद्वन् ! यथाहमवसे यमपां नपातं सवितारं परमात्मानमुपस्तौमि तथा तं त्वमप्युपस्तुहि प्रशंसय यथा वयं यस्य व्रतान्युश्मसि प्रकाशितुं कामयामहे तथा तस्यैतानि यूयमपि प्राप्तुं कामयध्वम्॥६॥

Word-Meaning: - (अपाम्) ये व्याप्नुवन्ति सर्वान् पदार्थानन्तरिक्षादयस्तेषां प्रणेतारम् (नपातम्) न विद्यते पातो विनाशो यस्येति तम्। नभ्राण्नपान्नवेदा० (अष्टा०६.३.७५) अनेनाऽयं निपातितः। (अवसे) रक्षणाद्याय (सवितारम्) सकलैश्वर्य्यप्रदम् (उप) सामीप्ये (स्तुहि) प्रशंसय (तस्य) जगदीश्वरस्य (व्रतानि) नियतधर्मयुक्तानि कर्माणि गुणस्वभावाँश्च (उश्मसि) प्राप्तुं कामयामहे॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्वान् परमेश्वरं स्तुत्वा तस्याज्ञामाचरन्ति। तथैव युष्माभिरप्यनुष्ठाय तद्रचितायामस्यां सृष्टावुपकाराः संग्राह्या इति॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा विद्वान माणूस परमेश्वराची स्तुती करून त्याच्या आज्ञेप्रमाणे वागतो, तसे तुम्हीही त्या परमेश्वराने निर्माण केलेल्या जगात त्याचे अनंत उपकार मान्य करा. ॥ ६ ॥