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या सु॒रथा॑ र॒थीत॑मो॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशा॑। अ॒श्विना॒ ता ह॑वामहे॥

English Transliteration

yā surathā rathītamobhā devā divispṛśā | aśvinā tā havāmahe ||

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Pad Path

या। सु॒ऽरथा॑। र॒थिऽत॑मा। उ॒भा। दे॒वा। दि॒वि॒ऽस्पृशा॑। अ॒श्विना॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:22» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हम लोग (या) जो (दिविस्पृशा) आकाशमार्ग से विमान आदि यानों को एक स्थान से दूसरे स्थान में शीघ्र पहुँचाने (रथीतमा) निरन्तर प्रशंसनीय रथों को सिद्ध करनेवाले (सुरथा) जिनके योग से उत्तम-उत्तम रथ सिद्ध होते हैं (देवा) प्रकाशादि गुणवाले (अश्विनौ) व्याप्ति स्वभाववाले पूर्वोक्त अग्नि और जल हैं, (ता) उन (उभा) एक-दूसरे के साथ संयोग करने योग्यों को (हवामहे) ग्रहण करते हैं॥२॥
Connotation: - जो मनुष्यों के लिये अत्यन्त सिद्धि करानेवाले अग्नि और जल हैं, वे शिल्पविद्या में संयुक्त किये हुए कार्य्यसिद्धि के हेतु होते हैं॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

Anvay:

वयं यौ दिविस्पृशा रथीतमा सुरथा देवाऽश्विनौ स्तस्तावुभौ हवामहे स्वीकुर्मः॥२॥

Word-Meaning: - (या) यौ। अत्र षट्सु प्रयोगेषु सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (सुरथा) शोभना रथा याभ्यां तौ (रथीतमा) प्रशस्ता रथा विद्यन्ते ययोः सकाशात् तावतिशयितौ। रथिन ईद्वक्तव्यः। (अष्टा०वा०८.२.१७) इतीकारादेशः। (उभा) द्वौ परस्परमाकांक्ष्यौ (देवा) देदीप्यमानौ (दिविस्पृशा) यौ दिव्यन्तरिक्षे यानानि स्पर्शयतस्तौ। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (अश्विना) व्याप्तिगुणशीलौ (ता) तौ (हवामहे) आदद्मः। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुकि श्लोरभावः॥२॥
Connotation: - मनुष्यैर्यौ शिल्पानां साधकतमावग्निजले स्तस्तौ सम्प्रयोजितौ कार्य्यसिद्धिहेतू भवत इति॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांसाठी अग्नी व जल हे अत्यंत सिद्धी करविणारे असतात. ते शिल्पविद्येत संयुक्त केलेल्या कार्यसिद्धीचे हेतू असतात. ॥ २ ॥