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उ॒ग्रा सन्ता॑ हवामह॒ उपे॒दं सव॑नं सु॒तम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी एह ग॑च्छताम्॥

English Transliteration

ugrā santā havāmaha upedaṁ savanaṁ sutam | indrāgnī eha gacchatām ||

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Pad Path

उ॒ग्रा। सन्ता॑। ह॒वा॒म॒हे॒। उप॑। इ॒दम्। सव॑नम्। सु॒तम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। आ। इ॒ह। ग॒च्छ॒ता॒म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:21» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हम लोग विद्या की सिद्धि के लिये जिन (उग्रा) तीव्र (सन्ता) वर्त्तमान (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि का (हवामहे) उपदेश वा श्रवण करते हैं, वे (इदम्) इस प्रत्यक्ष (सवनम्) अर्थात् जिससे पदार्थों को उत्पन्न और (सुतम्) उत्तम शिल्पक्रिया से सिद्ध किये हुए व्यवहार को (उपागच्छताम्) हमारे निकटवर्ती करते हैं॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को जिस कारण ये दृष्टिगोचर हुए तीव्र वेग आदि गुणवाले वायु और अग्नि शिल्पक्रियायुक्त व्यवहार में सम्पूर्ण कार्य्यों के उपयोगी होते हैं, इससे इनको विद्या की सिद्धि के लिये कार्यों में सदा संयुक्त करना चाहिये॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

Anvay:

वयं याविदं सुतं सवनमुपागच्छतामुपागमयतस्तावुग्रोग्रौ सन्तासन्ताविन्द्राग्नी इह हवामहे॥४॥

Word-Meaning: - (उग्रा) तीव्रौ (सन्ता) वर्त्तमानौ। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारः। (हवामहे) विद्यासिध्यर्थमुपदिशामः शृणुमश्च (उप) उपगमार्थे (इदम्) प्रत्यक्षम् (सवनम्) सुन्वन्ति निष्पादयन्ति पदार्थान् येन तत् (सुतम्) क्रियया निष्पादितं व्यवहारम् (इन्द्राग्नी) पूर्वोक्तौ (आ) समन्तात् (इह) शिल्पक्रियाव्यवहारे (गच्छताम्) गमयतः। अत्र लडर्थे लोडन्तर्गतो ण्यर्थश्च॥४॥
Connotation: - मनुष्यैर्यत इमौ प्रत्यक्षीभूतौ तीव्रवेगादिगुणौ शिल्पक्रियाव्यवहारे सर्वकार्य्योपयोगिनौ स्तस्तस्मादेतौ विद्यासिद्धये कार्य्येषु सदोपयोजनीयाविति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांना दृष्टिगोचर होणारे तीव्र वेग इत्यादी गुण असणारे वायू व अग्नी शिल्पक्रियायुक्त व्यवहाराच्या संपूर्ण कार्यात सदैव उपयोगी असतात. यामुळे त्यांना विद्येच्या सिद्धीसाठी कार्यात सदैव संयुक्त केले पाहिजे. ॥ ४ ॥