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ऋ॒तेन॑ मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा। क्रतुं॑ बृ॒हन्त॑माशाथे॥

English Transliteration

ṛtena mitrāvaruṇāv ṛtāvṛdhāv ṛtaspṛśā | kratum bṛhantam āśāthe ||

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Pad Path

ऋ॒तेन॑। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒। ऋ॒ता॒ऽवृ॒धौ॒। ऋ॒त॒ऽस्पृ॒शा॒। क्रतु॑म्। बृ॒हन्त॑म्। आ॒शा॒थे॒ इति॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:2» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

किस हेतु से ये दोनों सामर्थ्यवाले हैं, यह विद्या अगले मन्त्र में कही है-

Word-Meaning: - (ऋतेन) सत्यस्वरूप ब्रह्म के नियम में बंधे हुए (ऋतावृधौ) ब्रह्मज्ञान बढ़ाने, जल के खींचने और वर्षानेवाले (ऋतस्पृशा) ब्रह्म की प्राप्ति कराने में निमित्त तथा उचित समय पर जलवृष्टि के करनेवाले (मित्रावरुणौ) पूर्वोक्त मित्र और वरुण (बृहन्तम्) अनेक प्रकार के (क्रतुम्) जगद्रूप यज्ञ को (आशाथे) व्याप्त होते हैं॥८॥
Connotation: - परमेश्वर के आश्रय से उक्त मित्र और वरुण ब्रह्मज्ञान के बढ़ानेवाले, जल वर्षानेवाले, सब मूर्त्तिमान् वा अमूर्तिमान् जगत् को व्याप्त होकर उसकी वृद्धि विनाश और व्यवहारों की सिद्धि करने में हेतु होते हैं॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

केनैतावेतत्कर्म कर्त्तुं समर्थौ भवत इत्युपदिश्यते।

Anvay:

ऋतेनोत्पादितावृतावृधावृतस्पृशौ मित्रावरुणौ बृहन्तं क्रतुमाशाथे॥८॥

Word-Meaning: - (ऋतेन) सत्यस्वरूपेण ब्रह्मणा। ऋतमिति सत्यनामसु पठितम्। (निघं०३.१०) अनेनेश्वरस्य ग्रहणम्। ऋतमित्युदकनामसु च। (निघं०१.१२) (मित्रावरुणौ) पूर्वोक्तौ। देवताद्वन्द्वे च। (अष्टा०६.३.२५) अनेनानङादेशः। (ऋतावृधौ) ऋतं ब्रह्म तेन वर्धयितारौ ज्ञापकौ जलाकर्षणवृष्टिनिमित्ते वा। अत्रान्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (ऋतस्पृशा) ऋतस्य ब्रह्मणो वेदस्य स्पर्शयितारौ प्रापकौ जलस्य च (क्रतुम्) सर्वं सङ्गतं संसाराख्यं यज्ञम्। (बृहन्तम्) महान्तम् (आशाथे) व्याप्नुतः। छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। (अष्टा०३.४.६) इति वर्त्तमाने लिट्। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति नुडभावः॥८॥
Connotation: - ब्रह्मसहचर्य्ययैतौ ब्रह्मज्ञाननिमित्ते जलवृष्टिहेतू भूत्वा सर्वमग्न्यादिमूर्त्तामूर्त्तं जगद्व्याप्य वृद्धिक्षयकर्त्तारौ व्यवहारविद्यासाधकौ च भवत इति॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - परमेश्वराच्या आश्रयाने वरील मित्र (सूर्य) व वरुण (वायू) ब्रह्मज्ञानाचे निमित्त, जलाचा वर्षाव करणारे, सर्व प्रकट व अप्रकट जगाला व्याप्त करून त्याची वृद्धी, विनाश व व्यवहाराची सिद्धी करण्याचे हेतू असतात. ॥ ८ ॥