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वाय॑ उ॒क्थेभि॑र्जरन्ते॒ त्वामच्छा॑ जरि॒तारः॑। सु॒तसो॑मा अह॒र्विदः॑॥

English Transliteration

vāya ukthebhir jarante tvām acchā jaritāraḥ | sutasomā aharvidaḥ ||

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Pad Path

वायो॒ इति॑। उ॒क्थेभिः॑। ज॒र॒न्ते॒। त्वाम्। अच्छ॑। ज॒रि॒तारः॑। सु॒तऽसो॑माः। अ॒हः॒ऽविदः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:2» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त परमेश्वर और भौतिक वायु किस प्रकार स्तुति करने योग्य हैं, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

Word-Meaning: - (वायो) हे अनन्त बलवान् ईश्वर ! जो-जो (अहर्विदः) विज्ञानरूप प्रकाश को प्राप्त होने (सुतसोमाः) ओषधि आदि पदार्थों के रस को उत्पन्न करने (जरितारः) स्तुति और सत्कार के करनेवाले विद्वान् लोग हैं, वे (उक्थेभिः) वेदोक्त स्तोत्रों से (त्वाम्) आपको (अच्छ) साक्षात् करने के लिये (जरन्ते) स्तुति करते हैं॥२॥
Connotation: - यहाँ श्लेषालङ्कार है। इस मन्त्र से जो वेदादि शास्त्रों में कहे हुए स्तुतियों के निमित्त स्तोत्र हैं, उनसे व्यवहार और परमार्थ विद्या की सिद्धि के लिये परमेश्वर और भौतिक वायु के गुणों का प्रकाश किया गया है। इस मन्त्र में वायु शब्द से परमेश्वर और भौतिक वायु के ग्रहण करने के लिये पहिले मन्त्र में कहे हुए प्रमाण ग्रहण करने चाहियें॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कथमेतौ स्तोतव्यावित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे वायो ! अहर्विदः सुतसोमा जरितारो विद्वांस उक्थेभिस्त्वामच्छा जरन्ते॥२॥

Word-Meaning: - (वायो) अनन्तबलेश्वर ! (उक्थेभिः) स्तोत्रैः। अत्र बहुलं छन्दसीति भिसः स्थान ऐस्भावः। (जरन्ते) स्तुवन्ति। जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणः। (निरु०१०.८) जरत इत्यर्चतिकर्मा। (निघं०३.१४) (त्वाम्) भवन्तम् (अच्छ) साक्षात्। निपातस्य च। (अष्टा०६.३.१३५) इति दीर्घः। (जरितारः) स्तोतारोऽर्चकाश्च (सुतसोमाः) सुता उत्पादिताः सोमा ओषध्यादिरसा विद्यार्थं यैस्ते (अहर्विदः) य अहर्विज्ञानप्रकाशं विन्दन्ति प्राप्नुवन्ति ते। भौतिकवायुग्रहणे ख्ल्वयं विशेषः—(वायो) गमनशीलो विमानादिशिल्पविद्यानिमित्तः पवनः (जरितारः) स्तोतारोऽर्थाद् वायुगुणस्तावका भवन्ति। यतस्तद्विद्याप्रकाशितगुणफला सती सर्वोपकाराय स्यात्॥२॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। अनेन मन्त्रेण वेदादिस्थैः स्तुतिसाधनैः स्तोत्रैः परमार्थव्यवहारविद्यासिद्धये वायुशब्देन परमेश्वर-भौतिकयोर्गुणप्रकाशेनोभे विद्ये साक्षात्कर्त्तव्ये इति। अत्रोभयार्थग्रहणे प्रथममन्त्रोक्तानि प्रमाणानि ग्राह्याणि॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - येथे श्लेषालंकार आहे. या मंत्रात वेद इत्यादी शास्त्रात सांगितलेल्या स्तुतीनिमित्त जे स्तोत्र आहेत, त्यांच्यापासून व्यवहार व परमार्थ विद्येच्या सिद्धीसाठी परमेश्वर व भौतिक वायूचे गुण प्रकट केलेले आहेत या मंत्रात वायू या शब्दाने परमेश्वर व भौतिक वायूचा अंगीकार केला पाहिजे व पहिल्या मंत्रात सांगितलेले प्रमाण स्वीकारले पाहिजे ॥ २ ॥