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कु॒षु॒म्भ॒कस्तद॑ब्रवीद्गि॒रेः प्र॑वर्तमान॒कः। वृश्चि॑कस्यार॒सं वि॒षम॑र॒सं वृ॑श्चिक ते वि॒षम् ॥

English Transliteration

kuṣumbhakas tad abravīd gireḥ pravartamānakaḥ | vṛścikasyārasaṁ viṣam arasaṁ vṛścika te viṣam ||

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Pad Path

कु॒षु॒म्भ॒कः। तत्। अ॒ब्र॒वी॒त्। गि॒रेः। प्र॒ऽव॒र्त॒मा॒न॒कः। वृश्चि॑कस्य। अ॒र॒सम्। वि॒षम्। अ॒र॒सम्। वृ॒श्चि॒क॒। ते॒। वि॒षम् ॥ १.१९१.१६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:191» Mantra:16 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:16» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब वीछी आदि के विष हरने के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (गिरेः) पर्वत से (प्रवर्त्तमानकः) प्रवृत्त हुआ (कुषुम्भकः) छोटा नेउला (वृश्चिकस्य) वीछी के (विषम्) विष को (अरसम्) नीरस जो (अब्रवीत्) कहता अर्थात् चेष्टा से दूसरों को जताता है (तत्) इस कारण हे (वृश्चिक) अङ्गों को छेदन करनेवाले प्राणी (ते) तेरे (अरसम्) अरस (विषम्) विष है ॥ १६ ॥
Connotation: - मनुष्य वीछी आदि छोटे-छोटे जीवों के विष हरनेवाले पर्वतीय निउले का संरक्षण करें, जिससे विष-रोगों को निवारण करने में समर्थ होवें ॥ १६ ॥इस सूक्त में विष हरनेवाली ओषधी, विष हरनेवाले जीव और विषहारी वेद्यों के गुण का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति है, यह समझना चाहिये ॥यह एकसौ एक्यानवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग चौबीसवाँ अनुवाक और प्रथम मण्डल समाप्त हुआ ॥।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां परमविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्ते सुभाषाविभूषिते ऋग्वेदभाष्ये प्रथमं मण्डलं समाप्तम् ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वृश्चिकादिविषहरणविषयमाह ।

Anvay:

गिरेः प्रवर्त्तमानकः कुषुम्भको वृश्चिकस्य विषमरसं यदब्रवीत्तत्ततो हे वृश्चिक तेऽरसं विषमस्ति ॥ १६ ॥

Word-Meaning: - (कुषुम्भकः) अल्पः कुषुम्भो नकुलः (तत्) (अब्रवीत्) ब्रूते (गिरेः) शैलात् (प्रवर्त्तमानकः) प्रकृष्टतया वर्त्तमानः (वृश्चिकस्य) (अरसम्) अविद्यामानरसम् (विषम्) (अरसम्) (वृश्चिकः) यो वृश्चति छिनत्त्यङ्गानि तस्य (ते) तस्य (विषम्) ॥ १६ ॥
Connotation: - मनुष्या वृश्चिकादिविषनिवारकं पर्वतीयनकुलसंरक्षणं कुर्युर्यतो विषरोगनिवारणक्षमा भवेयुरिति ॥ १६ ॥ अत्र विषहरौषधजीवविषवैद्यानां गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति एकनवत्युत्तरं शततमं सूक्तं षोडशो वर्गश्चतुर्विंशोऽनुवाकः प्रथमं मण्डलञ्च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी वृश्चिक इत्यादीचे विष नष्ट करणाऱ्या पर्वतीय मुंगुस इत्यादी प्राण्यांचे संरक्षण करावे. ज्यामुळे विष रोगाचे निवारण करण्यास ते समर्थ व्हावेत. ॥ १६ ॥