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ए॒वा म॒हस्तु॑विजा॒तस्तुवि॑ष्मा॒न्बृह॒स्पति॑र्वृष॒भो धा॑यि दे॒वः। स न॑: स्तु॒तो वी॒रव॑द्धातु॒ गोम॑द्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

evā mahas tuvijātas tuviṣmān bṛhaspatir vṛṣabho dhāyi devaḥ | sa naḥ stuto vīravad dhātu gomad vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

ए॒व। म॒हः। तु॒वि॒ऽजा॒तः। तुवि॑ष्मान्। बृह॒स्पतिः॑। वृ॒ष॒भः। धा॒यि॒। दे॒वः। सः। नः॒। स्तु॒तः। वी॒रऽव॑त्। धा॒तु॒। गोऽम॑त्। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१९०.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - विद्वानों से जो (महः) बड़ा (तुविजातः) विद्यावृद्ध जन से प्रसिद्ध विद्यावाला (तुविष्मान्) शरीर और आत्मा के बल से युक्त (वृषभः) विद्वानों में शिरोमणि (देवः) अति मनोहर (स्तुतः) प्रशंसायुक्त (बृहस्पतिः) वेदों का अध्यापन पढ़ाने और उपदेश करने से पालनेवाला विद्वान् जन (धायि) धारण किया जाता है (सः, एव) वही (नः) हम लोगों के लिये (वीरवत्) बहुत जिसमें वीर विद्यमान वा (गोमत्) प्रशंसित वाणी विद्यमान उस विज्ञान को (धातु) धारण करे जिससे हम लोग (इषम्) विज्ञान (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) जीवन को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ ८ ॥
Connotation: - विद्वानों को चाहिये कि सकल शास्त्रों के विचार के सार से विद्यार्थी जनों को शास्त्रसम्पन्न करें जिससे वे शारीरिक और आत्मिक बल और विज्ञान को प्राप्त होवें ॥ ८ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुण, कर्म और स्वभावों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह एकसौ नब्बेवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

विद्वद्भिर्यो महस्तुविजातस्तुविष्मान् वृषभो देवः स्तुतो बृहस्पतिर्धायि स एव नो वीरवद्गोमद्विज्ञानं धातु यतो वयमिषं वृजनम् जीरदानुं च विद्याम ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (एव) निश्चये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (महः) महान् (तुविजातः) तुवेर्विद्यावृद्धात्प्रसिद्धविद्यः (तुविष्मान्) शरीरात्मबलयुक्तः (बृहस्पतिः) बृहतां वेदानामध्यापनोपदेशाभ्यां पालयिता (वृषभः) विद्वच्छिरोमणिः (धायि) ध्रियते (देवः) कमनीयतमः (सः) (नः) अस्मभ्यम् (स्तुतः) प्रशंसितः (वीरवत्) बहवो वीरा विद्यन्ते यस्मिन् विज्ञाने तत् (धातु) दधातु (गोमत्) प्रशस्ता गौर्वाग्यस्मिँस्तत् (विद्याम) (इषम्) विज्ञानम् (वृजनम्) (जीरदानुम्) ॥ ८ ॥
Connotation: - विद्वद्भिस्सकलशास्त्रविचारसारेण विद्यार्थिनः शास्त्रसम्पन्नाः कार्य्या यतस्ते शरीरात्मबलं विज्ञानं च प्राप्नुयुः ॥ ८ ॥अत्र विदुषां गुणकर्मस्वभाववर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेदितव्या ॥इति नवत्युत्तरं शततमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी संपूर्ण शास्त्राचे मर्म विद्यार्थ्यांना पटवून शास्त्रसंपन्न करावे. ज्यामुळे ते शारीरिक व आत्मिक बल व विज्ञान प्राप्त करतील. ॥