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सु॒प्रैतु॑: सू॒यव॑सो॒ न पन्था॑ दुर्नि॒यन्तु॒: परि॑प्रीतो॒ न मि॒त्रः। अ॒न॒र्वाणो॑ अ॒भि ये चक्ष॑ते॒ नोऽपी॑वृता अपोर्णु॒वन्तो॑ अस्थुः ॥

English Transliteration

supraituḥ sūyavaso na panthā durniyantuḥ pariprīto na mitraḥ | anarvāṇo abhi ye cakṣate no pīvṛtā aporṇuvanto asthuḥ ||

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Pad Path

सु॒प्ऽरैतुः॑। सु॒ऽयव॑सः। न। पन्था॑। दुः॒ऽनि॒यन्तुः॑। परि॑ऽप्रीतः। न। मि॒त्रः। अ॒न॒र्वाणः॑। अ॒भि। ये। चक्ष॑ते। नः॒। अपि॑ऽवृताः। अ॒प॒ऽऊ॒र्णु॒वन्तः॑। अ॒स्थुः॒ ॥ १.१९०.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (ये) जो (अनर्वाणः) धर्म से अन्यत्र अधर्म में अपनी चाल-चलन नहीं रखते (अपीवृताः) और समस्त पदार्थों के निश्चय में वर्त्तमान (नः) हम लोगों को (अपोर्णुवन्तः) अविद्यादि दोषों से न ढाँपते हुए जन (सुयवसः) जिसके सुन्दर अन्न विद्यमान उस (सुप्रैतुः) उत्तम विद्यायुक्त विद्वान् का (पन्थाः) मार्ग (न) जैसे वैसे तथा (दुर्नियन्तुः) जो दुःख से नियम करनेवाला उसके (परिप्रीतः) सब ओर से प्रसन्न (मित्रः) मित्र के (न) समान (अभि, चक्षते) अच्छे प्रकार उपदेश करते हैं वे हम लोगों के उपदेशक (अस्थुः) ठहराये जावें ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्वान् जन पूर्ण साधन और उपसाधनों से युक्त उत्तम मार्ग से अविद्या युक्तों को विद्या और धर्म के बीच प्राप्त करते और जिसने इन्द्रिय नहीं जीते उसको जितेन्द्रियता देनेवाले मित्र के समान शिष्यों को उत्तम शिक्षा देते हैं, वे इस जगत् में अध्यापक और उपदेशक होने चाहियें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

येऽनर्वाणोऽपीवृता नोऽस्मानपोर्णुवन्तस्सन्तः सुवयसः सुप्रैतुः पन्था न दुर्नियन्तुः परिप्रीतो मित्रो नाभिचक्षते तेऽस्माकमुपदेशका अस्थुः ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (सुप्रैतुः) सुष्ठु विद्योपेतस्य (सुयवसः) शोभनानि यवांसि अन्नानि यस्य तस्य। अत्राऽन्येषामपीत्याद्यचो दीर्घः। (न) इव (पन्थाः) मार्गः (दुर्नियन्तुः) यो दुर्दुःखेन नियन्ता तस्य (परिप्रीतः) सर्वतः प्रसन्नः (न) इव (मित्रः) सखा (अनर्वाणः) अविद्यमानमर्वधर्मादन्यत्र गमनं येषान्ते (अभि) आभिमुख्ये (ये) (चक्षते) सत्यमुपदिशन्ति (नः) अस्मान् (अपीवृताः) ये निश्चये वर्त्तन्ते (अपोर्णुवन्तः) अविद्यादिदोषैरनावरन्तः (अस्थुः) तिष्ठेयुः ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये विद्वांसोऽलं साधनोपसाधनयुक्ताः सुपथेनाविद्यायुक्तान् विद्याधर्मे प्रापयन्ति, अजितेन्द्रियस्य जितेन्द्रियत्वप्रदः सखिवच्छिष्यान् प्रशासति तेऽत्राध्यापका उपदेशकाश्च भवन्ति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्वान लोक पूर्ण साधन व उपसाधनांनी युक्त उत्तम मार्गाने अविद्यायुक्त लोकांना विद्या व धर्म शिकवितात व अजितेंद्रियांना जितेंद्रिय बनविणाऱ्या मित्राप्रमाणे शिष्यांना उत्तम शिक्षण देतात त्यांनी अध्यापक व उपदेशक व्हावे. ॥ ६ ॥