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अ॒न॒र्वाणं॑ वृष॒भं म॒न्द्रजि॑ह्वं॒ बृह॒स्पतिं॑ वर्धया॒ नव्य॑म॒र्कैः। गा॒था॒न्य॑: सु॒रुचो॒ यस्य॑ दे॒वा आ॑शृ॒ण्वन्ति॒ नव॑मानस्य॒ मर्ता॑: ॥

English Transliteration

anarvāṇaṁ vṛṣabham mandrajihvam bṛhaspatiṁ vardhayā navyam arkaiḥ | gāthānyaḥ suruco yasya devā āśṛṇvanti navamānasya martāḥ ||

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Pad Path

अ॒न॒र्वाण॑म्। वृ॒ष॒भम्। म॒न्द्रऽजि॑ह्वम्। बृह॒स्पति॑म्। व॒र्ध॒य॒। नव्य॑म्। अ॒र्कैः। गा॒था॒न्यः॑। सु॒ऽरुचः॑। यस्य॑। दे॒वाः। आ॒ऽशृ॒ण्वन्ति॑। नव॑मानस्य। मर्ताः॑ ॥ १.१९०.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ नब्बे सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुण, कर्म, स्वभावों का वर्णन करते हैं ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् गृहस्थ ! (देवाः) देनेवाले (मर्त्ताः) मनुष्य (यस्य) जिस (नवमानस्य) स्तुति करने योग्य (सुरुचः) सुन्दर धर्मयुक्त काम में प्रीति रखनेवाले (गाथान्यः) धर्मोपदेशों की प्राप्ति करने अर्थात् औरों के प्रति कहनेवाले सज्जन की प्रशंसा (आ शृण्वन्ति) सब ओर से करते हैं उस (अनर्वाणम्) अनर्वा अर्थात् अश्व की सवारी न रखने किन्तु पैरों से देश देश घूमनेवाले (वृषभम्) श्रेष्ठ (मन्द्रजिह्वम्) हर्ष करनेवाली जिह्वा जिसकी उस (बृहस्पतिम्) अत्यन्त शास्त्रबोध की पालना करनेवाले (नव्यम्) नवीन विद्वानों की प्रतिष्ठा को प्राप्त अतिथि को (अर्कैः) अन्न, रोटी, दाल, भात आदि उत्तम उत्तम पदार्थों से उसको (वर्द्धय) बढ़ाओ, उन्नति देओ, उसकी सेवा करो ॥ १ ॥
Connotation: - जो गृहस्थ प्रशंसा करनेवाले धार्मिक विद्वान् वा अतिथि संन्यासी अभ्यागत आदि सज्जनों की प्रशंसा सुनें उन्हें दूर से भी बुलाकर अच्छी प्रीति अन्न, पान, वस्त्र और धनादिक पदार्थों से सत्कार कर उनसे सङ्ग कर विद्या की उन्नति से शरीर आत्मा के बल को बढ़वा न्याय से सभों को सुख के साथ संयोग करावें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विदुषां गुणकर्मस्वभावानाह ।

Anvay:

हे विद्वन् गृहस्थ देवा मर्त्ता यस्य नवमानस्य सुरुचो गाथान्यः प्रशंसामाशृण्वन्ति तमनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्वं बृहस्पतिं नव्यमतिथिमर्कैस्त्वं वर्द्धय ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अनर्वाणम्) अविद्यमानाश्वं पदातिम् (वृषभम्) श्रेष्ठम् (मन्द्रजिह्वम्) मन्द्रा मोदकारिणी जिह्वा यस्य तम् (बृहस्पतिम्) बृहतः शास्त्रबोधस्य पालकमतिथिम् (वर्द्धय) उन्नय। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (नव्यम्) नवेषु विद्वत्सु प्रतिष्ठितम् (अर्कैः) अन्नादिभिः। अत्र बहुवचनं सूपाद्युपलक्षणार्थम्। (गाथान्यः) यो गाथा नयति तस्य (सुरुचः) शोभने धर्म्ये कर्मणि रुक् प्रीतिर्यस्य (यस्य) (देवाः) दातारः (आशृण्वन्ति) समन्तात् प्रशंसां कुर्वन्ति (नवमानस्य) स्तोतुमर्हस्य (मर्त्ताः) मनुष्याः ॥ १ ॥
Connotation: - ये गृहस्थाः प्रशंसिनां धार्मिकाणां विदुषामतिथीनां प्रशंसां शृणुयुस्तान् दूरादप्याहूय सम्प्रीत्या अन्नपानवस्त्रधनादिभिः सत्कृत्य सङ्गत्य विद्योन्नत्या शरीरात्मबलं वर्द्धयित्वा न्यायेन सर्वान् सुखेन सह संयोजयेयुः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानांच्या गुण कर्म स्वभावाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - गृहस्थांनी प्रशंसा करणाऱ्या धार्मिक, विद्वान, अतिथी, संन्यासी, अभ्यागत इत्यादी सज्जनांची प्रशंसा ऐकून त्यांना दूरस्थ असतील तरीही आमंत्रित करावे. प्रेमाने अन्न, पान, वस्त्र व धन इत्यादी देऊन त्यांचा सत्कार करावा. त्यांच्या संगतीने विद्यावृद्धी करावी. शरीर व आत्म्याचे बल वाढवून न्यायाने सर्वांचा सुखाने संयोग करावा. ॥ १ ॥