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पा॒हि नो॑ अग्ने पा॒युभि॒रज॑स्रैरु॒त प्रि॒ये सद॑न॒ आ शु॑शु॒क्वान्। मा ते॑ भ॒यं ज॑रि॒तारं॑ यविष्ठ नू॒नं वि॑द॒न्माप॒रं स॑हस्वः ॥

English Transliteration

pāhi no agne pāyubhir ajasrair uta priye sadana ā śuśukvān | mā te bhayaṁ jaritāraṁ yaviṣṭha nūnaṁ vidan māparaṁ sahasvaḥ ||

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Pad Path

पा॒हि। नः॒। अ॒ग्ने॒। पा॒युऽभिः। अज॑स्रैः। उ॒त। प्रि॒ये। सद॑ने। आ। शु॒शु॒क्वान्। मा। ते॒। भ॒यम्। ज॒रि॒तार॑म्। य॒वि॒ष्ठ॒। नू॒नम्। वि॒द॒त्। मा। अ॒प॒रम्। स॒ह॒स्वः॒ ॥ १.१८९.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:189» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! (शुशुक्वान्) विद्या और विनय से प्रकाश को प्राप्त (अजस्रैः) निरन्तर (पायुभिः) रक्षा के उपायों से (प्रिये) मनोहर (सदने) स्थान (उत) वा शरीर में वा बाहर (नः) हम लोगों को (आ, पाहि) अच्छे प्रकार पालिये जिससे हे (यविष्ठ) अत्यन्त युवावस्थावाले (सहस्वः) सहनशील विद्वन् ! (ते) आपकी (जरितारम्) स्तुति करनेवाले को (भयम्) भय (मा) मत (विदत्) प्राप्त होवे (नूनम्) निश्चय कर (अपरम्) और को भय (मा) मत प्राप्त होवे ॥ ४ ॥
Connotation: - वे ही प्रशंसनीय जन हैं, जो निरन्तर प्राणियों की रक्षा करते हैं और किसीके लिये भय वा निर्बलता को नहीं प्रकाशित करते हैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

हे अग्ने शुशुक्वाँस्त्वमजस्रैः पायुभिः प्रिये सदन उत शरीरे बहिर्वा नोऽस्माना पाहि। हे यविष्ठ सहस्वस्ते जरितारं भयं मा विदन्नूनमपरं भयं माप्नुयात् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (पाहि) (नः) अस्मान् (अग्ने) अग्निवद्विद्वन् (पायुभिः) रक्षणोपायैः (अजस्रैः) निरन्तरैः (उत) (प्रिये) कमनीये (सदने) स्थाने (आ) (शुशुक्वान्) विद्याविनयाभ्यां प्रकाशितः (मा) (ते) तव (भयम्) (जरितारम्) (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (नूनम्) निश्चितम् (विदत्) विद्यात् प्राप्नुयात् (मा) (अपरम्) अन्यम् (सहस्वः) सोढुं शील ॥ ४ ॥
Connotation: - त एव प्रशंसनीया जना ये सततं प्राणिनो रक्षन्ति कस्मादपि भयं नैर्बल्यञ्च न कुर्वन्ति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - तेच लोक प्रशंसनीय असतात जे प्राण्यांचे निरंतर रक्षण करतात, भय व निर्बलता प्रकट करीत नाहीत. ॥ ४ ॥