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अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒ये अ॒स्मान्विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्। यु॒यो॒ध्य१॒॑स्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑उक्तिं विधेम ॥

English Transliteration

agne naya supathā rāye asmān viśvāni deva vayunāni vidvān | yuyodhy asmaj juhurāṇam eno bhūyiṣṭhāṁ te namaüktiṁ vidhema ||

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Pad Path

अग्ने॑। नय॑। सु॒ऽपथा॑। रा॒ये। अ॒स्मान्। विश्वा॑नि। दे॒व॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। जु॒हु॒रा॒णम्। एनः॑। भूयि॑ष्ठाम्। ते॒। नमः॑ऽउक्तिम्। वि॒धे॒म॒ ॥ १.१८९.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:189» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ नवासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर के गुणों का उपदेश करते हैं ।

Word-Meaning: - हे (देव) मनोहर आनन्द के देनेवाले (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूपेश्वर (विद्वान्) सकल शास्त्रवेत्ता ! आप (अस्मान्) हम मुमुक्षु अर्थात् मोक्ष चाहते हुए जनों को (राये) धनादि प्राप्ति के लिये (सुपथा) धर्मयुक्त सरल मार्ग से (विश्वानि) समस्त (वयुनानि) उत्तम-उत्तम ज्ञानों को (नय) प्राप्त कराइये, (जुहुराणम्) खोटी चाल से उत्पन्न हुए (एनः) पाप को (अस्मत्) हमसे (युयोधि) अलग करिये जिसमें हम (ते) आपकी (भूयिष्ठाम्) अधिकतर (नमउक्तिम्) सत्कार के साथ स्तुति का (विधेम) विधान करें ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यों को धर्म तथा विज्ञान मार्ग की प्राप्ति और अधर्म की निवृत्ति के लिये परमेश्वर की अच्छे प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये और सदा सुमार्ग से चलना चाहिये, दुःखरूपी अधर्ममार्ग से अलग रहना चाहिये, जैसे विद्वान् लोग परमेश्वर में उत्तम अनुराग करते वैसे अन्य लोगों को भी करना चाहिये ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरगुणानाह ।

Anvay:

हे देवाऽग्ने विद्वाँस्त्वमस्मान्राये सुपथा विश्वानि वयुनानि नय। जुहुराणमेनोऽस्मद्युयोधि यतो वयं ते भूयिष्ठां नमउक्तिं विधेम ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूपेश्वर (नय) प्रापय (सुपथा) धर्म्येण सुगमेन सरलेन मार्गेण (राये) ऐश्वर्यानन्दप्राप्तये (अस्मान्) मुमुक्षून् (विश्वानि) सर्वाणि चराचरजगत्कर्माणि च (देव) कमनीयानन्दप्रद (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) यो वेत्ति (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) (जुहुराणम्) कुटिलगतिजन्यम् (एनः) पापम् (भूयिष्ठाम्) अधिकाम् (ते) तव (नमउक्तिम्) नमसा सत्कारेण सह स्तुतिम् (विधेम) कुर्याम ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्धर्मविज्ञानमार्गप्राप्तये अधर्मनिवृत्तये च परमेश्वरः सम्प्रार्थनीयः सदा सुमार्गेण गन्तव्यं दुष्पथादधर्ममार्गात्पृथक् स्थातव्यं यथा विद्वांसः परमेश्वरे परानुरक्तिं कुर्वन्ति तथेतरैश्च कार्या ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात परमेश्वर, विद्वान व शिक्षण देणाऱ्यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी धर्म व विज्ञानाची प्राप्ती व अधर्माच्या निवृत्तीसाठी परमेश्वराची चांगल्या प्रकारे प्रार्थना केली पाहिजे व सदैव सुमार्गाने चालले पाहिजे. दुःखरूपी अधर्म मार्गापासून दूर राहिले पाहिजे. जसे विद्वान लोक परमेश्वरात अनुरक्त असतात, तसे इतर लोकांनीही राहिले पाहिजे. ॥ १ ॥