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वि॒राट् स॒म्राड्वि॒भ्वीः प्र॒भ्वीर्ब॒ह्वीश्च॒ भूय॑सीश्च॒ याः। दुरो॑ घृ॒तान्य॑क्षरन् ॥

English Transliteration

virāṭ samrāḍ vibhvīḥ prabhvīr bahvīś ca bhūyasīś ca yāḥ | duro ghṛtāny akṣaran ||

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Pad Path

वि॒राट्। स॒म्राट्। वि॒भ्वीः। प्र॒ऽभ्वीः। ब॒ह्वीः। च॒। भूय॑सीः। च॒। याः। दुरः॑। घृ॒तानि॑। अ॒क्ष॒र॒न् ॥ १.१८८.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:188» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (विराट्) जो विविध प्रकार के गुणों और कर्मों में प्रकाशमान वा (सम्राट्) जो चक्रवर्त्ती के समान विद्याओं में सुन्दरता से प्रकाशमान सो आप (याः) जो (विभ्वीः) व्याप्त होनेवाली (प्रभ्वीः) समर्थ (बह्वीः) बहुत अनेक (भूयसीः, च) और अधिक से अधिक सूक्ष्म मात्रा (दुरः) द्वारे अर्थात् सर्व कार्यसुखों को और (घृतानि, च) जलों को (अक्षरन्) प्राप्त होती हैं, उनको जानो ॥ ५ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो सब जगत् की बहुत तत्त्वयुक्त सत्व रजस्तमो गुणवाली सूक्ष्ममात्रा नित्यस्वरूप से सदा वर्त्तमान हैं, उनको लेकर पृथिवीपर्यन्त पदार्थों को जान सब कार्य सिद्ध करने चाहियें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् विराट् सम्राट् त्वं या विभ्वीः प्रभ्वीर्बह्वीर्भूयसीश्चाऽण्व्यो मात्रा दुरो घृतानि चाक्षरन् ता विजानीहि ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (विराट्) यो विविधेषु गुणेषु कर्मसु वा राजते (सम्राट्) यश्चक्रवर्त्तीव विद्यासु सम्यग् राजते सः (विभ्वीः) व्यापिकाः (प्रभ्वीः) समर्थाः (बह्वीः) अनेकाः (च) (भूयसीः) पुनः पुनरधिकाः (च) (याः) (दुरः) द्वाराणि (घृतानि) उदकानि (अक्षरन्) प्राप्नुवन्ति ॥ ५ ॥
Connotation: - हे मनुष्याः याः सर्वस्य जगतो बहुतत्त्वाढ्यास्त्रिगुणात्मिका मात्रा नित्यस्वरूपेण सदा वर्त्तन्ते ता आरभ्य पृथिवीपर्यन्तान् पदार्थान् विज्ञाय सर्वकार्य्याणि साधनीयानि ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! जी सर्व जगाची तत्त्वयुक्त सत्त्व, रज, तमो गुणरूपी सूक्ष्म मात्रा नित्यस्वरूपाने विद्यमान आहे, त्यांच्याद्वारे पृथ्वी इत्यादी पदार्थांना जाणून सर्व कार्य सिद्ध केले पाहिजे. ॥ ५ ॥